रविवार, 16 नवंबर 2014

प्रकृति का प्रतिशोध




हम अगर प्रकृति को कलाकार के रूप में देखें तो पाएंगे कि  यह हमारे लिए अनेक प्रेरणाएँ संजोकर  लायी है । इसका हरएक अंग हमसे क्या कहता है  देखें जरा :-
वृक्ष -  हममें  परोपकार की भावना का सृजन करते हैं । हमारे लिए मीठे फल प्रदान करते है ।\

सूर्य - स्वयं जलकर हमें प्रकाश देता है । यह निरंतर बिना रुके , बिना थके क्रियाशील रहता है । 

ऋतु -  ऋतुएँ हमें परिवर्तनशीलता सिखलाती है. । हर परिस्थिति में -फूलों की बहार हो या हो पतझड़ -हर            मौसम में अटल रहना सिखाती हैं । 

आसमान - हमारे  सपनों को  ऊंचाई देता है, स्थिरता देता है ।\

सागर -गम्भीरता , 
पर्वत - दृढ़ता 
नदियाँ - पर्वतों का सीना चीरते हुए ,मुसीबतों  से लड़ना 
हवा - अपनी शीतलता व् सुगंध से सबको मद मस्त कर देती है । 


प्रकृति अपने हर रूप में हमें जीवन दान देती है । इसे संजो कर रखना हमारा कर्तव्य बनता है , अन्यथा यह हमारे दरवाजों पर प्रतिशोध की दस्तक देगी ----



Quotes About Nature




प्रकृति तूने ही दिया जग को सुख - वैभव ,
तेरी ही गोदी में पला, यह मानव । 
यह दे रही दस्तक ,लेने को प्रतिशोध ,
क्योंकि तूने किया नग्न इसे हर रोज । 
ओ !पापी मानव -
क्यूँ  तू इसे मिटाने  पर अड़ा  है ?
पेड़ काट -काट कर किस गर्व से खड़ा है ?
करतूत तेरी यह एक दिन ,धरती धँसाएगी ,
घर -बार ,भाई- बंधू  ,सभी को बहाएगी । 
अगर न समझा तू अभी तो पीछे पछताएगा ,
पल -भर में होगी शमशान वसुंधरा ,
तू समझ ना पाएगा । 
ओ !नासमझ मानव ,ना उजाड़ अपनी प्रकृति को । 
प्रस्फुटित कर नव अंकुर ,
रख सलामत धरा को । 
सम्हल जा समय पर ,कि प्रकृति प्रतिशोध न करे । 
न हो कोई ऐसी अनहोनी -
कि दुनिया को डरना पड़े । 
आपदा के इस प्रकोप से -
पशु -पक्षी ,भाई -बंधू ना  हो बीमार । 
वृक्षारोपण से भू  का कर नव श्रृंगार ,

खुशहाली से महके सारा संसार ।



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