हम अगर प्रकृति को कलाकार के रूप में देखें तो पाएंगे कि यह हमारे लिए अनेक प्रेरणाएँ संजोकर लायी है । इसका हरएक अंग हमसे क्या कहता है देखें जरा :-
वृक्ष - हममें परोपकार की भावना का सृजन करते हैं । हमारे लिए मीठे फल प्रदान करते है ।\
सूर्य - स्वयं जलकर हमें प्रकाश देता है । यह निरंतर बिना रुके , बिना थके क्रियाशील रहता है ।
ऋतु - ऋतुएँ हमें परिवर्तनशीलता सिखलाती है. । हर परिस्थिति में -फूलों की बहार हो या हो पतझड़ -हर मौसम में अटल रहना सिखाती हैं ।
आसमान - हमारे सपनों को ऊंचाई देता है, स्थिरता देता है ।\
सागर -गम्भीरता ,
पर्वत - दृढ़ता
नदियाँ - पर्वतों का सीना चीरते हुए ,मुसीबतों से लड़ना
हवा - अपनी शीतलता व् सुगंध से सबको मद मस्त कर देती है ।
प्रकृति अपने हर रूप में हमें जीवन दान देती है । इसे संजो कर रखना हमारा कर्तव्य बनता है , अन्यथा यह हमारे दरवाजों पर प्रतिशोध की दस्तक देगी ----
प्रकृति तूने ही दिया जग को सुख - वैभव ,
तेरी ही गोदी में पला, यह मानव ।
यह दे रही दस्तक ,लेने को प्रतिशोध ,
क्योंकि तूने किया नग्न इसे हर रोज ।
ओ !पापी मानव -
क्यूँ तू इसे मिटाने पर अड़ा है ?
पेड़ काट -काट कर किस गर्व से खड़ा है ?
करतूत तेरी यह एक दिन ,धरती धँसाएगी ,
घर -बार ,भाई- बंधू ,सभी को बहाएगी ।
अगर न समझा तू अभी तो पीछे पछताएगा ,
पल -भर में होगी शमशान वसुंधरा ,
तू समझ ना पाएगा ।
ओ !नासमझ मानव ,ना उजाड़ अपनी प्रकृति को ।
प्रस्फुटित कर नव अंकुर ,
रख सलामत धरा को ।
सम्हल जा समय पर ,कि प्रकृति प्रतिशोध न करे ।
न हो कोई ऐसी अनहोनी -
कि दुनिया को डरना पड़े ।
आपदा के इस प्रकोप से -
पशु -पक्षी ,भाई -बंधू ना हो बीमार ।
वृक्षारोपण से भू का कर नव श्रृंगार ,
1 टिप्पणी:
Great tribute indeed!
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