मंगलवार, 26 जनवरी 2016

A land of Fantasy--Pelling #Fantastico
























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पेल्लिंग सिक्किम राज्य के पश्चिम में 7200 ft. की ऊंचाई पर बसा एक शानदार रमणीय ,पर्वतीय स्थान है । New year 2016  का स्वागत करने व celebrate करने के  लिए हम सपरिवार अपने home town Kurseong से रवाना हुए ।



ज्यों - ज्यों हम पेल्लिंग की और बढ़े ,प्रकृति के अविस्मरणीय  सौंदर्य में प्रवेश करते गए । छोटे -छोटे ,पतले -पतले ,ऊंचाई को नापते रास्ते, यूँ  महसूस हो रहा था न जाने कब फिर पीछे की और गाड़ी फिसल जाए । कुछ एक जगहों में संतरों के बगीचे ,हरियाली के साथ केशरिया रंग बिखेर रहे थे । जैसे ही आगे बढे भारी वर्षा ओलों के साथ कार के शीशों  पर तबला वादन करने लगी । रास्तों  के दोनों और हिम की श्वेत  चादर बिछ गयी । यह खूबसूरत नज़ारा आँखों को चकाचौध कर रहा था । सांसे जैसे रूक गयी थी । एक अजीब -सा भय -अगले पल का या फिर सांसे रूक जाने का दिमाग पर हावी हो चूका था । गाड़ी ओलों की वजह ऊपर चढ़ नहीं पा  रही थी चक्के फिसल रहे थे ,यूँ लग रहा था 'थोड़ी नजर हटी और कुछ अनहोनी घटना घटी । देखते -देखते गाड़ियों की क़तार लग गयी,न आगे न पीछे ।



जैसे -जैसे बारिश  धीमी पड़ने लगी ,भय थोड़ा नियंत्रण में आया । सहयात्रियों ने पानी में भींगते हुए सड़क के बीच एक -एक गाड़ी गुजरने का रास्ता बनाया । करीब ढाई घंटे की कड़ी मक्कसद के पश्चात इस रस्ते आगे बढ़ने लगे । इतनी देर से जो सांसे रुकी हुई थी -एक अद्भुत सौंदर्य के दर्शन से जोरों से धड़कने लगी । आँखे खुली की खुली रह गयी ,जब हिमालय की चोटी की श्रंखला नज़र आने लगी । डूबते सूर्य की लालिमा इस बर्फीले पर्वत से स्पर्श कर सुनहरी प्रतीत हो रही थी । सोने की खान नहीं ,लगा हमने सोने का पहाड़ देखा है । यूँ प्रतीत हुआ किसी स्वप्नलोक में प्रवेश कर रहे है । इस दृश्य ने सभी को प्रफुल्लित कर दिया पेल्लिंग के लिए ।

हॉटल  माउंट पेन्डियम  पहुँचने की उत्सुकता और बढ़ गयी । "वाह ! क्या जगह है '-सभीलोग एक साथ बोल पड़े। हॉटल  के परिसर से दृष्टिगत प्राकृतिक सौंदर्य कल्पनाओं से परे  था । वास्तव में किसी fantasy से कम नहीं । मनमोहक इस दृश्य को दिल में समां लेना चाहते थे ।


प्रातःकाल उदय होते सूर्य की लालिमा हिम का स्पर्श पा  गजब ढा  रही थी । सूर्य जैसे -जैसे ऊपर चढ़ता कंचनजंघा अपने पुरे यौवन पर दिख रही थी । कभी किरणों की चमक इस छोर  पर तो कभी दूसरे छोर  पर ,जाने आँख मिचौनी खेल रही हो ।



सूर्य की किरणे जैसे ही धरती पर सीधे गिरने लगी ,तुषारमंडित हिमालय की यह श्रंखला चाँदी  की तरह चमकने लगी । यह क्या! कभी सुनहरा रंग तो कभी रुपहला । प्रकृति की अद्भुत छटा  का गजब रूप पेल्लिंग में देखने मिला । ठंडी हवाएं ,कड़ाके की सर्दी ,ओवरकोट ,ग्लव्स और टोपी व गर्म चाय-कॉफी  के साथ किसी Wonderland or Dreamland से कम नहीं यह पेल्लिंग ।

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रविवार, 24 जनवरी 2016

अनुशासन -प्रकृति की सीख

प्रातःकाल होते ही जैसे कमरे की खिड़की से सूर्य की लालिमा , अलसाए चेहरे पर पड़ती है ,मैं जागने को आतुर हो उठती हूँ । बिस्तर पर  रज़ाई को एक और फेंक झट -से उगते सूर्य से पहली सिख मिलती है -मुस्कराओ और काम में लग जाओ ।

चिड़ियों का चहचहाना ,मुर्गे की कुकड़ू -कूँ ना जाने शरीर में कैसे स्फूर्ति दाल देती है । अपने दो पंखों के सहारे कितनी ऊँची -ऊँची नभ में उड़ान भर लेते हैं । क्या हमारे पास इन पंक्षियों से ज्यादा साधन नहीं ? हाँ फिर हम अपनी उड़न में इनसे पीछे क्यों रह जातेहैं ?

ऋतुएँ अपना काम समय पर करती हैं ,जिस क्रम में उन्हें ईश्वर द्वारा बंधा गया है ,बिना किसी रिश्वत ,तू -तू , मैं -मैं  के ब्रह्माण्ड में संतुलन बनाए  रखतीं हैं । दूसरी तरफ हम हैं कि बस की क़तर में भी सहनशक्ति नहीं रख पाते  । प्रकृति यह सञ्चालन किसी हाईटेक सरकार द्वारा नहीं होता ।

वृक्ष ,पेड़ -पौधे -कभी अपने फल -फूल पर घमंड नहीं करते ,ये तो निःस्वार्थ सेवा करतें हैं ।मनुस्यों द्वारा छोड़ी कार्बनडाइऑक्साइड ग्रहण कर ,ताजे फल -फूल बांटते है । कभी यह नहीं कहते -यह मेरा इलाका है ,वह तुम्हारा । यह मेरी जमीं है -तुम छाया  के हक़दार नहीं ।

नदियां निरंतर बहती रहती हैं -रह में कितने ही रोड़े क्यों न आए ,उसका काम है बहना ,बहती रहती है । मधुर संगीत के साथ बहना इसकी  शान है ।

दिन के पहरों का बदलना 'परिवर्तनशीलता " का परिचायक है । सुबह ,दोपहर ,संध्या और रजनी -विशाल अनुशासन को दर्शाती हैं । एक रत आराम न करो तो शरीर शिथिल पद जाता है । समय के अनुसार हमारे विचार व रहन -सहन में परिवर्तन आना जरुरी है ।

तारे धरती -से कितने ही दूर क्यों ना  हो -अपनी झिलमिलाहट द्वारा इससे अपना सघन रिश्ता बनाये रखतें हैं ।
रिश्तों को निभाना हम इनसे सीखें ।

गहन अँधेरे के बीच चाँद की चांदनी जब प्रकाश बिखेरती है तो"'आशा " को जन्म देती है । चांदनी कहती है शीतल रहो।  नीरस ना  होओ , आशा का पल्लू थामे रहो ,सफलता जरूर मिलेगी ।

बादलों का गड़गड़ाना , बिजली का चमकना -जीवन की मुसीबतों से जगह कराता  है ।  मुसीबतें अति है ,चली भी जाती है , घबराना नहीं ।

खुले मैदान में दिन -भर चरने के बाद गायें  भी  गोधूलि होते ही अपने घरों को चल देती हैं । उन्हें भी स्वतंत्रता की सीमा का एहसास है । अपने मालिक के साथ अपनत्व है ।

किसी की स्वतंत्रता का हनन करने का नतीजा प्रकृति से सीखें । प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने पर इसका कुप्रकोप भुगतना पड़ता है । ईश्वर ने इसकी संरचना की हमारी सुरक्षा के लिए ,ना  की उसे उजड़ने के लिए
प्राकृतिक सौंदर्य शांति देता है । बड़े -बड़े ऋषि -मुनियों ने इसी प्रकृति के बीच आराधना की व स्वयं को समर्पित किया ।

क्या हम हवा -पानी के बिना जीवित रह सकते हैं ? फिर इन्हें दीक्षित करने का अधिकार हमें किसने दिया ?
रोजमर्रा की जिंदगी में प्रदुषण से स्वच्छ हवा दूषित हो रही हैं । पानी अनेक बिमारियों की जड़ बनता जा रहा है । क्यों ? क्योंकि हमने इसमें संक्रमण फैलाया है ।

अन्त  में मैं यही कहूँगी प्रकृति के अनुशासन को समझें और जीवन में खुशियां लाएं ।इसके   प्रभाव को गुणे  और स्वच्छ  ,सुन्दर और स्वस्थ्य जीवन बिताएं ।

I LOVE NATURE.

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शनिवार, 23 जनवरी 2016

स्मरण वो यादें , जब तुम  मेरी गोदी में खेला करती
मृणालिनी तू मेरे आँगन में ,चारों ओर चहका करती
तितली -सी चंचल तू , अब बेटों संग उलझा करती
खेल -खेल में कब हो गयी बड़ी ,रच गयी  शादी तेरी
तारों  -सी रहे चमक ,ससुराल ओर मायके में तेरी
क्त गुजर गया ,दहलीज़  बदल गयी ,न  बदली तू
रक्की व ख़ुशी मिले ,यही कामना तेरे जन्मदिन पर मेरी  

रविवार, 10 जनवरी 2016

"बाजे" -कर्मठता की मिसाल

'बाजे' शीर्षक पढ़कर शायद आपको अजीब -सा लगा होगा । 'बाजे ' नेपाली भाषा में दादा या नाना ( grandfather) को कहा जाता है । यहाँ मैं मेरे किसी दादा या नाना की बात नहीं कर रही । यह बाजे  सचमुच में grand है । हमारे यहाँ माली का काम करते हैं। इनकी कर्मठता का क्या कहना - बेमिसाल है ।


82 साल के होने के बावजूद  काम के प्रति  इनका लगाव सचमुच में  लाजवाब है । हमारे इन्ही बाजे की कर्मठता कविता के रूप में लिख रही हूँ --

सुबह -सुबह ,दोनों हाथ जोड़े 
चेहरे पर झुर्रियाँ ,उम्र 82 साल 
'मैडम नमस्ते ,''सर नमस्ते ' कह 
मुस्कराता,बगल में हँसियाँ और कुदाल । 

न थकान ,न अभिमान 
न शिकवा ,न शिकायत 
चाय की एक चुस्की से फिर 
हो तरोताज़ा ,काम में न कोई किफ़ायत । 

विचार ऐसे -"आराम हराम है",
'परिश्रम' जीवन की औषधि 
रुके न खाद मिश्रण ,न सफाई 
मेहनत न लगती इन्हें दुखदायी । 

इस बुढ़ापे में बाजे का मन है 
नव अंकुरित पौधे -सा 
मुरझाएगा  या फलेगा 
नहीं निराशा ,धुँधली आँखों में । 

साहब अगर न करू काम 
शरीर मेरा हो जाएगा निष्काम 
बिना डरे ,चढ़ जाता पेड़ों पर , 
बढ़ जाता, ढोए मिट्टी पीठ पर ।

दोनों हाथों से फिर कर सलाम 
ले लेता विदाई हर शाम 
'भोली फेरी आउँछु'-कह (कल फिर आऊंगा)
दे जाता कर्मठता का पैगाम ॥