रविवार, 10 जनवरी 2016

"बाजे" -कर्मठता की मिसाल

'बाजे' शीर्षक पढ़कर शायद आपको अजीब -सा लगा होगा । 'बाजे ' नेपाली भाषा में दादा या नाना ( grandfather) को कहा जाता है । यहाँ मैं मेरे किसी दादा या नाना की बात नहीं कर रही । यह बाजे  सचमुच में grand है । हमारे यहाँ माली का काम करते हैं। इनकी कर्मठता का क्या कहना - बेमिसाल है ।


82 साल के होने के बावजूद  काम के प्रति  इनका लगाव सचमुच में  लाजवाब है । हमारे इन्ही बाजे की कर्मठता कविता के रूप में लिख रही हूँ --

सुबह -सुबह ,दोनों हाथ जोड़े 
चेहरे पर झुर्रियाँ ,उम्र 82 साल 
'मैडम नमस्ते ,''सर नमस्ते ' कह 
मुस्कराता,बगल में हँसियाँ और कुदाल । 

न थकान ,न अभिमान 
न शिकवा ,न शिकायत 
चाय की एक चुस्की से फिर 
हो तरोताज़ा ,काम में न कोई किफ़ायत । 

विचार ऐसे -"आराम हराम है",
'परिश्रम' जीवन की औषधि 
रुके न खाद मिश्रण ,न सफाई 
मेहनत न लगती इन्हें दुखदायी । 

इस बुढ़ापे में बाजे का मन है 
नव अंकुरित पौधे -सा 
मुरझाएगा  या फलेगा 
नहीं निराशा ,धुँधली आँखों में । 

साहब अगर न करू काम 
शरीर मेरा हो जाएगा निष्काम 
बिना डरे ,चढ़ जाता पेड़ों पर , 
बढ़ जाता, ढोए मिट्टी पीठ पर ।

दोनों हाथों से फिर कर सलाम 
ले लेता विदाई हर शाम 
'भोली फेरी आउँछु'-कह (कल फिर आऊंगा)
दे जाता कर्मठता का पैगाम ॥   

      

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