'बाजे' शीर्षक पढ़कर शायद आपको अजीब -सा लगा होगा । 'बाजे ' नेपाली भाषा में दादा या नाना ( grandfather) को कहा जाता है । यहाँ मैं मेरे किसी दादा या नाना की बात नहीं कर रही । यह बाजे सचमुच में grand है । हमारे यहाँ माली का काम करते हैं। इनकी कर्मठता का क्या कहना - बेमिसाल है ।
82 साल के होने के बावजूद काम के प्रति इनका लगाव सचमुच में लाजवाब है । हमारे इन्ही बाजे की कर्मठता कविता के रूप में लिख रही हूँ --
सुबह -सुबह ,दोनों हाथ जोड़े
चेहरे पर झुर्रियाँ ,उम्र 82 साल
'मैडम नमस्ते ,''सर नमस्ते ' कह
मुस्कराता,बगल में हँसियाँ और कुदाल ।
न थकान ,न अभिमान
न शिकवा ,न शिकायत
चाय की एक चुस्की से फिर
हो तरोताज़ा ,काम में न कोई किफ़ायत ।
विचार ऐसे -"आराम हराम है",
'परिश्रम' जीवन की औषधि
रुके न खाद मिश्रण ,न सफाई
मेहनत न लगती इन्हें दुखदायी ।
इस बुढ़ापे में बाजे का मन है
नव अंकुरित पौधे -सा
मुरझाएगा या फलेगा
नहीं निराशा ,धुँधली आँखों में ।
साहब अगर न करू काम
शरीर मेरा हो जाएगा निष्काम
बिना डरे ,चढ़ जाता पेड़ों पर ,
बढ़ जाता, ढोए मिट्टी पीठ पर ।
दोनों हाथों से फिर कर सलाम
ले लेता विदाई हर शाम
'भोली फेरी आउँछु'-कह (कल फिर आऊंगा)
दे जाता कर्मठता का पैगाम ॥
82 साल के होने के बावजूद काम के प्रति इनका लगाव सचमुच में लाजवाब है । हमारे इन्ही बाजे की कर्मठता कविता के रूप में लिख रही हूँ --
सुबह -सुबह ,दोनों हाथ जोड़े
चेहरे पर झुर्रियाँ ,उम्र 82 साल
'मैडम नमस्ते ,''सर नमस्ते ' कह
मुस्कराता,बगल में हँसियाँ और कुदाल ।
न थकान ,न अभिमान
न शिकवा ,न शिकायत
चाय की एक चुस्की से फिर
हो तरोताज़ा ,काम में न कोई किफ़ायत ।
विचार ऐसे -"आराम हराम है",
'परिश्रम' जीवन की औषधि
रुके न खाद मिश्रण ,न सफाई
मेहनत न लगती इन्हें दुखदायी ।
इस बुढ़ापे में बाजे का मन है
नव अंकुरित पौधे -सा
मुरझाएगा या फलेगा
नहीं निराशा ,धुँधली आँखों में ।
साहब अगर न करू काम
शरीर मेरा हो जाएगा निष्काम
बिना डरे ,चढ़ जाता पेड़ों पर ,
बढ़ जाता, ढोए मिट्टी पीठ पर ।
दोनों हाथों से फिर कर सलाम
ले लेता विदाई हर शाम
'भोली फेरी आउँछु'-कह (कल फिर आऊंगा)
दे जाता कर्मठता का पैगाम ॥
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