बुधवार, 19 नवंबर 2014

जीवन का कालचक्र



Life in your hands - plant whit garden background

जीवन का  कालचक्र 

छः महीने की थी 
जब तेरे गर्भ में मैं, माँ  
कान लगा 
सुनते थे मेरी साँसे 
जब मैं तुझे लात मारती  
हाथों से कर स्पर्श ,कहते 
कैसा सुन्दर है यह एहसास ।  
छः महीने की हुई जब, 
जन्म के बाद 
काली मखमल की फ्रॉक 
पहनाकर,तस्वीर खींचते, 
गाल थपथपाते ,
अंगुली थमाते बार -बार । 
छठे- साल में पकड़ अंगुली
स्कूल तक छोड़ आते  
छुट्टी का रहता इंतजार, 
देखने को मुस्कराहट एकबार ।  
सोलह साल लगते -लगते 
चिंता करते अपार 
कर दें  इसको खड़ा 
अपने पैरों पर 
ऐसे थे तुम्हारे विचार । 
पढ़ा -लिखा काबिल बना दूँ 
न करना पड़े निर्भर किसी पर  
ब्याह रचाया बिटिया का 
खुशियां बांटी ,
नाना-नानी बनने की ।
आँख झपकते बीते पल 
फिर से दोहराई गई,  
वही कहानी
जो  तुम से शुरू हुई थी,  
अब मैं हो रही -
साठ  साल की 
बन गयी दादी -नानी  
चलता रहेगा यूँ- ही 
जीवन का ये कालचक्र 
जब -तक धरती पर हैं, 
रिश्तों की ममतामयी कतार।