गुरुवार, 6 नवंबर 2014

'चेतना '- ड्रग के ताण्डव का अंत

<b>Drug</b> <b>Addiction</b> Prevention




ड्रग :- मैं  दवा हूँ  , मैं नशा हूं ,मैं  विनाश  हूँ ,मैं मृत्यु हूँ । मैं मस्ती देती हूँ ,मैं झुमाती हूँ ,मैं जमीन से आसमान
की शैर कराती हूँ । मेरे  कई रूप हैं -ये देखो ! कोकीन ! अरे वाह !ये हेरोईन !वाह ! क्या कहना । मैं कैफ़िन ,मैं शराब ।  मैं सभी जगह मिलती हूँ -दवा  दुकानों  पर ,बाजारों की  संकीर्ण गलियारों मेँ , स्मगलरों के अड्डों पर ,जँहा चाहो वहाँ मिलती हूँ ।  मेरे बहुत दलाल हैं । मैं  विद्यार्थियों में ,मैं युवाओं में ,मैं युवतियों में ,मैं अमीर में ,मैं  गरीब में ,मैं सभी में प्रवेश कर सकती हूँ । 

चेतना ;- मैं  चेतना  हूँ ,मैं आत्मा हूँ ,मैं जागृति हूँ ,मैं सुख हूँ ,समृद्धि हूँ ,मैं जीवन हूँ । मैं तुममे हूँ ।हाँ - मैं आप में हूँ। घर में ,परिवार में ,समाज में देश में ,विदेश में ,,सभी जगह मेरा एहसास  है ।  मैं विश्व व्यापी हूँ । मैं  ज्ञान हूँ, मैं विद्या हूँ ,मैं अटल हूँ -अमर हूँ ,विनाशहीन हूँ । 

ड्रग ;- विनाशहीन ! कैसी विनाशहीन ? क्या दिया है तुमने दुनिया को ?कर्म ,परिश्रम ,मेहनत ,रुपया ,पैसा और टेंशन । नहीं -मुझे देखो मुझे । मैंने मस्ती दी है ,आत्मसुख दिया है तुम्हे । जिंदगी भर हासिल करने वाला सुख दिया है तुम्हें । आनंद दिया है ,जिम्मेवारियों से छुटकारा दिया है तुम्हें । एक सुखी जीवन ,एक झूमता  जीवन । न काम ,न काज ,न माता ,न पिता ,न परिवार ,न समाज । कुछ टेंशन नहीं । बस मस्ती ही मस्ती । 


चेतना ;- मस्ती ! किसे कहते हो मस्ती ?तुम तो शारारिक और मानसिक यातना हो । पूछो उनसे जो तुम्हारे  शिकार हैं - क्या पाया है उन लोगों ने ? घृणा ,तिरस्कार ,अकेलापन ।  तुम अभिमानी हो ,विनाशक ,तुम  मृत्यु का दूसरा रूप हो । 

ड्रग ;-तुम  मृत्यु का भय पैदा करते हो ,मृत्यु को गले लगाता  हूँ । मैं  लोगों को दुनियादारी से मुक्त कराता हूँ मैं उन्हें सांसारिक बंधनों से ऊपर ले जा कर परम सुख दिलाता हूँ । 

चेतना ;- नहीं ! नहीं !कभी नहीं ।  तुम लोगों का खून  पीते  हो ,उनका स्वास्थ्य हरते हो ,उनकी भावनाएं ,रिश्ते -नाते सब खत्म करते हो । तुम मनुष्य के विनाश में जुटे हो । 

ड्रग ;- हा -हा -हा-हा ! क्या  कहा ? मुँह मियाँ मिट्ठू । संसार से तो एक दिन सबको जाना ही है -

                                        "आयें हैं जो जायेगें ,राजा- रंक- फ़क़ीर । 
                                          एक सिंहासन चढ़ी चलैं ,एक बंधे जंजीर ।।"

हा -हा- हा-हा । ताज पहनों या जंजीर से बंध कर ,जाना तो सभी को है ।  

चेतना ;- वाह रे विनाशी ! नाश हो तेरा । तू क्या जाने ताज को ,तू क्या जाने मीठे बोल को ॥ कितनों के लाल का शोषण किया तूने ,कितनों के घर उजाड़े ,कितनो को लावारिश बना डाला । किसी ने ठीक ही कहा है -
                                        
                                          "दिल के फफोले जल उठे, दिल की ही आग से । 
                                           घर किसी का उजड़ चूका ,ड्रग के ग्रास से ।। " 

उठो विद्यार्थियों ,उठो युवकों ,उठो देशवासियों ,
करो जागृत अपनी चेतना को,
न बर्बाद हो लाल किसी का ,
न शोषित हो रक्त किसी का ,
न ख़त्म हो घर - परिवार किसी का ,
न पतन के गर्त में जाये, देश हम सभी का ,
उठो आवाज दो ,ड्रग को त्याग दो ,
एक जुट हों हम ,विनाश की कगार पर ,
करें ड्रग का विरोध हम,घर -घर, द्वार -द्वार ,
उठो आवाज दो ,ड्रग को त्याग दो ।  



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