मंगलवार, 11 नवंबर 2014

तेरा गर्भ --मेरी कब्र (Your womb, alas, my tomb )

 












However, there is another alarming statistic that has emerged. 


माँ   सुन सकती थी वो लोरी, जो तूने गाई थी
जैसे ही मैं  तेरे , सुन्दर गर्भ मेँ  आई थी ।
तेरा स्पर्श, शायद नहीं था ,मेरा प्रारब्ध
क्योंकि तेरे ही गर्भ मेँ ,खुद गयी मेरी कब्र ।

ओह ! कैसे झूलूंगी ? तेरी बाहों के झूलों में ,
नौ माह की गहरी निद्रा के पश्चात  ।
आह ! समय के प्रवाह ने धीरे से धकेला ,
मुझे उसी कब्र में ,जो खुदी थी तेरे गर्भ मेँ ।

मैंने तेरी गोद  को चाहा था ,सचमुच
यह मेरा सबसे प्यारा घर जो होता
तेरा मधुरआलिंगन, तेरा ममतामयी स्पर्श ,
मुझे और मेरे झूले को ,झूला जो देता ।

हाँ !जब मैं बड़ी होती,सचमुच हर पल
तेरे इन नयनों का तारा  होती ।
निकट भविष्य में  हूबहू तेरी परछाई बन ,
होता मेरा अस्तित्व और मेरी अपनी पहचान ।

माँ! गर  तूने प्रसव पीड़ा झेली होती ,
नारी होकर ,नारीत्व की न होली होती ।
तेरी आभा ,तेरी ममता की ,
भरे बाजार न नीलामी होती ।

किन्तु माँ , मिट गया तेरा-मेरा रिश्ता ,
गर्भपात की, तेरी पातक हरकत से।
माँ नौ माह अगर किया होता तूने सब्र ,
तेरा गर्भाशय ,न बन जाता मेरी कब्र ।


 बेटी दिल के बहुत करीब होती है । मुझे नहीं मालुम  हम स्वयं बेटी होकर बेटी के जन्म लेने पर ,उसे बोझ क्यों समझने लगते हैं । हम यह क्यों भूल जाते हैं कि बेटी तो दहलीज का वह दीपक है जो कमरे के भीतर भी और बाहर भी उजाला फैलाती है । भ्रुण हत्या की न सोचकर उसके उज्जवल भविष्य की कामना कर के देखें ,तो हम पाएंगे कि  वह हमारे दिल के कितने करीब है ।आज की नारी "अबला " नहीं अपितु , उन्नति  है । एक तरफ भावनावों  का सागर है तो दूसरी तरफ शक्ति का आसमान है । हमने उसकी इच्छा समझने की कोशिश  ही नहीं की । वह भ्रुण  जो बेटी के रूप में गर्भ में पल रहा है - माँ से क्या कहना चाहता है मैंने एक छोटी -सी कविता के रूप में पंक्तिबद्ध  किया है । मेरी बेटी नैन्सी बिंदल(Nancy Bindal) की अंग्रेजी में लिखी गयी 'Your womb,alas my tomb' कविता  का हिंदी अनुवाद मैंने किया  है ।

  |'Your womb,alas, my tomb' 

I could hear the lullaby's you sang to me,
As I cuddled up in your womb 
Your embrace was not my destiny
For I descended into the tomb.

Oh ! How I'd fret to be in your arms
After nine months of tender sleep
But I slipped off gently as the sands of time 
Into my grave so deep!

I'd adorn your lap and it sure would be
My favorite place to be
Your firm clasp yet tender touch
Would rock my cradle and me!

When I'd grow up, I certainly would 
Be the twinkle of your eye
One fine day I'd fit into your shoe
And set my ideals high!

I sure would, mama, if only you
Would value your precious treasure
I'd fill your moments with smiles
To time beyond measure!

Your abortive attempt has melted
The abiding relation we'd share
Your womb wouldn't be my tomb
Mama, if only you would care!

1 टिप्पणी:

Amit Agarwal ने कहा…

marmsparshi vichaar aur prastuti!