शनिवार, 29 नवंबर 2014

ये तो इंडिया है

ये  तो इंडिया है 

घर को मेरे मैं चार बार 
रोज सफा करवाता 
तनिक -सी गंदगी गर रह जाए
मुझे एलर्जी हो जाती 
घर से बाहर जब निकलता
गाड़ी की खिड़की से बाहर 
छिलका केले का हो या हो च्विंगम 
सड़क पर फेंकने में नहीं कोई गम 
किसके कपड़ों में चिपके 
फिसलकर किसकी हड्डी टूटे 
नहीं विषय मेरी चिंता का 
क्यूंकि -ये इंडिया है । 
  
मंदिर में प्रसाद सवा सेर ,
पत्थर की मूर्ति पर करता अर्पित
भूखे पेट बैठी छोटी -सी बाला,
उसी मंदिर के बाहर -'चल हट'
कह उसका करता तिरस्कार
मेरे बच्चे मेरे अपने हैं
स्वीट हार्ट और दिल के टुकड़े हैं
अनाथ कोई गर आए मेरे द्वारे
कहूँ अप- शब्द और धक्का मारूं
बेटा होने पर भव्य पार्टी
बेटी होने पर हुई बड़ी  चिता
क्यूंकि -ये तो इंडिया है ।

व्यापर अपना बढ़ाने को

नेताजी को दी रिश्वत
पेड़ लगाने की दी हिदायत
पर कागज की नावें बना बहा दी
आस -पास देख ढेर कूड़ों का ,
आँख -नाक सिकोड़ 
वहाँ सेपतली- गली निकल पड़ता
मिसेज मेरी ,भर बाल्टी कचरा
वहीँ पर डाल ,पहाड़ बना देती
मक्खी -मच्छर बहुत हो गए
'गुड -नाईट'की फरमाइस थमा देती
क्यूंकि ये तो इंडिया है ।

भाई मेरे ये तो इंडिया है ,
कहते वक्त भूल गया था
मैं भी तो इंडियन हूँ
भूल गया था कि
भारत बना -भारतवासी से
भूल गया था कि
देश परिवर्तन से पहले
स्वयं में परिवर्तन जरुरी है
जिस दिन समझ लूंगा कि
मैं सच्चा भारतवासी हूँ ,
गर्व से कहूँगा -"ये तो इंडिया है " ।
 
 

गुरुवार, 27 नवंबर 2014

खोज रहा मेरा बचपन

खोज रहा मेरा बचपन

सिर पर उठाये ईंटों का बोझ 
मैं खोज रहा ,मेरा बचपन 
पिता मेरे नशे में धुत,
कर रहे व्यतीत अपना जीवन । 
माँ फटी -सी साड़ी में लिपटी ,
खाँस -खाँस ,फूंक रही ईंधन । 
खाली  है चूल्हे के बगल में,
आटे -दाल व  चावल का बर्तन । 
सिर पर उठाये ईंटों का बोझ 
मैं खोज रहा ,मेरा बचपन । 
स्कूल के दरवाजे से लौट आया 
खेल के मैदान भूल आया 
त्याग आया खिलौनों की दुनिया 
छोड़ आया गाँव की गलियाँ 
दोस्तों से अब हुई दूरियाँ 
शहरी मिट्टी पर ,ऊँची इमारतें बनाने 
सिर पर उठाये ईंटों का बोझ 
मैं खोज रहा ,मेरा बचपन । 
गन्नों के लहलहाते खेतों को छोड़ 
गाय  के ताजे दूध से मुंह मोड़ 
खेतों की सकड़ी पगडण्डी से 
शहरों  की चौड़ी सड़कों  पर
गांव के जीर्ण खटालों से 
भीड़ भरी शहरी चालों में 
सिर पर उठाये ईंटों का बोझ 
मैं खोज रहा ,मेरा बचपन । 

कल देखता था सपने ,
बचपन की अठखेलियों के 
आज कल्पित है सपने ,
भविष्य की कामयाबी के 
कल साँस लेता था खुली हवा में 
आज पसीना बहा रहा हूँ ,बंद मकानों में 
सिर पर उठाये ईंटों का बोझ 
मैं खोज रहा ,मेरा बचपन । 
picture from google.com  

बुधवार, 19 नवंबर 2014

जीवन का कालचक्र



Life in your hands - plant whit garden background

जीवन का  कालचक्र 

छः महीने की थी 
जब तेरे गर्भ में मैं, माँ  
कान लगा 
सुनते थे मेरी साँसे 
जब मैं तुझे लात मारती  
हाथों से कर स्पर्श ,कहते 
कैसा सुन्दर है यह एहसास ।  
छः महीने की हुई जब, 
जन्म के बाद 
काली मखमल की फ्रॉक 
पहनाकर,तस्वीर खींचते, 
गाल थपथपाते ,
अंगुली थमाते बार -बार । 
छठे- साल में पकड़ अंगुली
स्कूल तक छोड़ आते  
छुट्टी का रहता इंतजार, 
देखने को मुस्कराहट एकबार ।  
सोलह साल लगते -लगते 
चिंता करते अपार 
कर दें  इसको खड़ा 
अपने पैरों पर 
ऐसे थे तुम्हारे विचार । 
पढ़ा -लिखा काबिल बना दूँ 
न करना पड़े निर्भर किसी पर  
ब्याह रचाया बिटिया का 
खुशियां बांटी ,
नाना-नानी बनने की ।
आँख झपकते बीते पल 
फिर से दोहराई गई,  
वही कहानी
जो  तुम से शुरू हुई थी,  
अब मैं हो रही -
साठ  साल की 
बन गयी दादी -नानी  
चलता रहेगा यूँ- ही 
जीवन का ये कालचक्र 
जब -तक धरती पर हैं, 
रिश्तों की ममतामयी कतार।    
  





रविवार, 16 नवंबर 2014

श्रमदान

'श्रमदान' शब्द कहने और सुनने दोनों में कड़वा लगता है । हकीकत यह है कि बिना श्रम के हम एक निट्ठले की जिंदगी जीते हैं । सूट- बूट पहनकर अपने को हम बाबू क्यों ना  समझे ,अगर दिमाग को तंदरुस्त रखना है तो मेहनत तो करनी पड़ेगी । पत्थर तोड़ने से ही मेहनत होती है ऐसी बात नहीं । रोजमर्रा की जिंदगी में ऐसे सैकड़ो काम आते है जो हम स्वयं कर सकते हैं और उन्हें न करने पर हम दूसरों पर बोझ बनते हैं ।कम से कम अपना काम तो हम स्वयं करें । ऑफिस में फाइल निकालना , अपने जुते  पॉलिस करना ,झूठे बर्तन रखना, आदि ।आस -पास का वातावरण स्वच्छ रखे। अगर इस अनुशाशन को मान कर चलें कि  न इधर -उधर  कचरा फेकेंगे और न सफाई के लिए दूसरों पर निर्भर रहेंगे तो काफी हद तक वातावरण को स्वच्छ रखने में कामयाब हो सकते हैं । बच्चों को छोटी उम्र से साफ -सफाई का महत्व बताए । सिर्फ उपदेश नहीं ,उदाहरण बने ।                                                           
                                             हमारा शरीर एक मशीन की तरह है ,इसका सही उपयोग नहीं करेंगे तो अनान्य बिमारियों के शिकार हो जाएंगे । आज फिटनेस के लिए ज़िम जा कर पसीना बहाना मंजूर है ,मगर अपने ही घर में झाड़ू लगाना मंजूर नहीं । आस -पास कूड़ों के ढ़ेर  देख अपने ही देश को नरक कहना अच्छा समझते हैं । 'ये तो इंडिया है " कह कर वहाँ से सरक जाते हैं।यह समझने की कोशिश नहीं करते कि इण्डिया आखिर है क्या ?हम नहीं तो इंडिया नहीं , देशवासियों से ही देश बनता है । इसप्रकार इन गंदगी के ढेरों के जिम्मेवार भी हम हैं । सरकारी संस्थाएं तो जिम्मेवार है ही मगर हम थोड़ा -थोड़ा हाथ तो बंटा सकते है ना- कूड़ा हर कंही न फेंक कर । 
                                                 फूल,फल और सब्जियाँ उगाएं। हरदिन एकाध घण्टा शारीरिक कार्य के लिए भी दें । मानसिक काम तो हम खूब करते हैं ,क्योंकि हमारा ओहदा जो बड़ा होता है । तनावग्रस्त होने पर फिर शारीरिक परिश्रम की और दौड़ते हैं -व्यायाम  । वर्तमान में हम शारीरिक काम से घृणा करने लगे हैं ,इसे छोटा समझते हैं । भविष्य में खुशहाल  जीवन जीना है  तो थोड़ा -बहुत  श्रम जरूर करें । 

इसी संदर्भ में स्वर्गीय ईश्वरचंद्र विद्यासागर की ये पंक्तियाँ मुझे बहुत याद आती  है -"अपना काम करते आप न लजाओ ।  "  
                                         

बेटी की विदाई

 

आज है शादी बेटी की ,
माता -पिता का मन हर्षाए'
बेटी के विवाह पर ढेरों आशीर्वाद बरसाए । 
मम्मी -पापा की आँखों की ज्योति,
नन्हें -नन्हें कदम चली, 
बांहों के झूले झूल हुई बड़ी ।
बचपन की यह चुलबुली गुड़िया 
चटपटी बातों से लेती थी सबको रिझा 
घर की यह प्यारी व लाडली ,
थी दिलों पर सवार । 
भाइयों से उलझती ,
छोटी-छोटी नोक-झोक पर। 
आंसू बहा-बहा ,दिल जो जीतती ,
हम सबकी यह छोटी डॉल । 
इसकी बातें ,इसके ठहाके ,
कर देते थे सबको गोल । 
सखियों की सबसे प्यारी सखी,
चाट खिलाती ,पिक्चर दिखाती । 
मनमानी यह नखरे दिखाती ,
बेटी होने का लुफ्त उठाती । 
आज यही हमारी बिटिया,
हो गयी अचानक सयानी । 
डोली में बैठ ,चली पति के आँगन ,
बनेगी अब सास -ससुर की शोभा । 
विदाई के इस शुभदिन ,
ईश्वर देना बिटिया को तुम ,
दुर्गा-सी शक्ति ,सरस्वती की सोच।  
नव जीवन में अपने,पाए प्यार 
और  सम्मान हररोज। 
कर सके अपने फैसलें ,
ना  बने किसी पर बोझ ।   

  

प्रकृति का प्रतिशोध




हम अगर प्रकृति को कलाकार के रूप में देखें तो पाएंगे कि  यह हमारे लिए अनेक प्रेरणाएँ संजोकर  लायी है । इसका हरएक अंग हमसे क्या कहता है  देखें जरा :-
वृक्ष -  हममें  परोपकार की भावना का सृजन करते हैं । हमारे लिए मीठे फल प्रदान करते है ।\

सूर्य - स्वयं जलकर हमें प्रकाश देता है । यह निरंतर बिना रुके , बिना थके क्रियाशील रहता है । 

ऋतु -  ऋतुएँ हमें परिवर्तनशीलता सिखलाती है. । हर परिस्थिति में -फूलों की बहार हो या हो पतझड़ -हर            मौसम में अटल रहना सिखाती हैं । 

आसमान - हमारे  सपनों को  ऊंचाई देता है, स्थिरता देता है ।\

सागर -गम्भीरता , 
पर्वत - दृढ़ता 
नदियाँ - पर्वतों का सीना चीरते हुए ,मुसीबतों  से लड़ना 
हवा - अपनी शीतलता व् सुगंध से सबको मद मस्त कर देती है । 


प्रकृति अपने हर रूप में हमें जीवन दान देती है । इसे संजो कर रखना हमारा कर्तव्य बनता है , अन्यथा यह हमारे दरवाजों पर प्रतिशोध की दस्तक देगी ----



Quotes About Nature




प्रकृति तूने ही दिया जग को सुख - वैभव ,
तेरी ही गोदी में पला, यह मानव । 
यह दे रही दस्तक ,लेने को प्रतिशोध ,
क्योंकि तूने किया नग्न इसे हर रोज । 
ओ !पापी मानव -
क्यूँ  तू इसे मिटाने  पर अड़ा  है ?
पेड़ काट -काट कर किस गर्व से खड़ा है ?
करतूत तेरी यह एक दिन ,धरती धँसाएगी ,
घर -बार ,भाई- बंधू  ,सभी को बहाएगी । 
अगर न समझा तू अभी तो पीछे पछताएगा ,
पल -भर में होगी शमशान वसुंधरा ,
तू समझ ना पाएगा । 
ओ !नासमझ मानव ,ना उजाड़ अपनी प्रकृति को । 
प्रस्फुटित कर नव अंकुर ,
रख सलामत धरा को । 
सम्हल जा समय पर ,कि प्रकृति प्रतिशोध न करे । 
न हो कोई ऐसी अनहोनी -
कि दुनिया को डरना पड़े । 
आपदा के इस प्रकोप से -
पशु -पक्षी ,भाई -बंधू ना  हो बीमार । 
वृक्षारोपण से भू  का कर नव श्रृंगार ,

खुशहाली से महके सारा संसार ।



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पिकनिक

 

आज सुबह से ही स्कूल में बच्चों के पैरों की आहट बड़ी तिब्र सुन रही थी। कहीं पानी की बोतलें भरी जा रही थी, कहीं बैग सजाए जा रहे थे ,कहीं  मनपसंद खाने की चीजें लाई जा रही थी ,कहीं खेल के सामान तैयार किये जा रहे थे और कही -कहीं गुटबाजी चल रही थी ।मैंने  ऊपरी मंजिल  के मेरे कमरे की  खिड़की से झांक कर देखा, देखते  ही समझ गई -ओह ! आज तो 'स्कूल पिकनिक ' जो है । हाँ ! साल में शायद एक यही दिन होता है जब
ये विद्यार्थी सबसे अधिक उत्साहित नजर आते हैं । इनका उत्साह ,इनकी ख़ुशी बयाँ नहीं की जा सकती ।   आजाद पंक्षियों की तरह हॉस्टल से बाहर  मस्ती करने जो जा रहे थे । 
                                  गाड़ियाँ आई ,स्कूल गेट के बाहर रुकते ही सब के सब अपने निर्धारित स्थान पर बगुले भगत की तरह जा बैठे,कि  कहीं पिकनिक कैंसल न हो जाए  । गाड़ी चली और शोर -शराबे से पूरा वातावरण गूंज उठा । खेल के आइटम से खाने के मेन्यू तक सब मुख़स्त । किसी गाड़ी से फ़िल्मी गानों की ,किसी से "three cheers to Belle Vue", "three cheers for teachers n staff","three cheers for bellevians", आदि के नारे सुनने लगे। बच्चों में जोश देखते ही बनता था । सारे रास्ते गाड़ी के अन्दर  ही नाच -गाना  चलता रहा ।
                                   गंतब्य स्थान 'दुधे' जैसे ही गाड़ियां पहुंची ,एक -एक कर फटाफट पानी में डुबकियां लगने लगी । दुधे नदी तिस्ता नदी की शाखा है तथा पिकनिक स्पॉट भी ।बच्चों की सुरक्षा व सुविधा का पूरा ध्यान रखा गया । खाना -पीना, खेल ,नाच-गाना और बहुत सारा मनोरंजन , सब ख़ुशी के सातवें आसमान 
पर थे ।      
                                   वापस आते -आते शाम ढलने लगी ,गाड़ी में बैठे -बैठे सोच रही थी क्या विद्यार्थियों की आज की यह ख़ुशी हमें कुछ सन्देश दे रही है ? हाँ । हम हमारे पढ़ाने  के ढंग में कुछ बदलाव लाए । पढाई को भी एक मनोरंजन का साधन  बनाए । शिक्षा के बढ़ते हुए तनाव को कम  करें । कहानी -किस्सों के साथ पाठ  का वर्णन करें । दिलचस्प उदाहरण प्रस्तुत करें । चित्रों का भी अधिकाधिक प्रयोग करें । नाटक के संवाद बच्चे बड़ी आसानी से याद कर  लेते है, अपनी पाठ्य -पुस्तक के नहीं -क्यों ? संक्षिप्त -सा उत्तर है -ये दिलचस्प नहीं है । पाठ  के संवादों को मंच पर मंचित करें । छोटी कक्षाओं से विज्ञानं आदि विषयों में बच्चों की रूचि ,बाहर खुले मैदान में पेड़ -पौधों ,फूलों आदि से मिलाकर भी प्रेरित कर बढ़ा सकते है। कक्षा के अन्दर  आपसी वार्तालाप व तर्क - वितर्क  के जरिए  भी रोचक बना सकते हैं । 
                                     
                                शिक्षा का माध्यम चाहे कुछ भी हो बस दिलचस्प  हो ताकि बच्चे  हंसी -ख़ुशी
 देश के अच्छे नागरिक बने ,अपनी जिम्मेवारियाँ  समझे तथा देश के भावी कर्णधार बने ।     

शुक्रवार, 14 नवंबर 2014

ये पाँच

Grand children are God's way of compensating us for growing old and are the dots that connect the lines from generation to generation.


नम्बर वन  में आता  शियम                                    
जिसके सामने न चलता कोई नियम 
देख सफ़ेद बाल  नानू -नानी के ,कहता- 
'क्या हो जावोगे अब ईश्वर के प्यारे?'
जितनी चंचलता व शरारत  इसकी आँखों में 
उतना भोलापन और मिठास इसकी बातों में । 

नम्बर  टू  में आती  नायशा 

मधुर मुस्कान से कहती -वंडरफुल ! 
'यू आर द बेस्ट नानी  इन द  व्हॉल वर्ल्ड'
कला की यह रानी है ,नजरें इसकी पैनी हैं 
बारीकी से कनवास सजाती , गुड़िया 
की डाक्टर , ब्यूटिशियन व मम्मी बन जाती । 

नम्बर  थ्री में सिया है 

इसे टीचर कहने में कोई अचरज नहीं 
नाचने और नचाने में माहिर यह 
लीडर बन ऑर्डर करने में ,हाजिर यह 
अपनी मीठी -मीठी बातों से रिझाती 
नित नए -नए योगासन सिखाती । 

नम्बर  फॉर  में आता सोहम 

भोली -सी बोली ,भोली -सी सूरत 
'आप ठीक तो हो नानी ' ?-कह 
दिल में बसा देता अपनी सूरत 
भैया का नकलची बन्दर  यह 
ममता और प्यार का सिकंदर यह । 

नम्बर फाइव में बारी  नीव की 

सबसे छोटा ,सबसे खोटा  
टेलटविस्टर  हमारे घर का 
चुलबुली हरकतों से ,कभी 
बनता ही-मेन, तो कभी ऑयरन मेन 
कभी जग्गू ,कभी भीम बन करता मनोरंजन।   

इन पाँचों की पंचायत जब लग जाती 

मम्मी -पापा, नाना -नानी ,की ऑंखें भर आती  
इनकी प्यारी हरकत व तुतले बोलों से 
बचपन फिर लौट आता  आँगन में 
ईश्वर से है बस यही वंदना 
भरी रहे खुशियाँ इनके  दामन में ।

  

गुरुवार, 13 नवंबर 2014

अस्त होता सूर्य




अस्त होता सूर्य

अस्त होता सूर्य न जाने हमारे मन में कितने भ्रम पैदा करता है । जैसे हमारा अंधविश्वास  है कि  यह समय
शुभ नहीं होता, दोनों समय यानि सुबह और शाम का मिलन होता है  । सूर्यास्त से शाम का आगमन होता  है। हमारे जीवन की बृद्धावस्था की तुलना भी हम संध्या से करते हैं ।  क्या हम बृद्ध हो गए हैं तो अपना होंसला खो दें, स्वयं को कमजोर समझें ? क्या अपने -आप को नालायक समझें  ?अस्त होता सूर्य हमें  यह नहीं सिखाता । वह तो डूबने के बाद भी आसमां  में लाली बिखेरता है । नयी किरणों को ढूढ़ने निकल पड़ता है । हमें वह यह सन्देश नहीं देता कि  जिंदगी समाप्त हो रही है ,बल्कि हमसे कहता है निराश न हो ,होंसले न गँवाओ , नयी आशाओं के साथ अपना जीवन जीओ । देखो यह डूबता सूरज नई किरणें  खोजने गया है ,एक नई  सुबह के साथ लौटेगा । यह नयी सुबह फिर से सुरमयी धीमा -धीमा प्रकाश लेकर आ रही है,फिर से वही  चहल -पहल ,वही आशाएं ,वही भागदौड़ ,वही धुमा -मस्ती । क्या हममें अनुभव की कमी है,क्या जोश की कमी है ?
                                       नहीं , हम परिवर्तनशील नहीं है । परिवर्तन चाहिए हमारी सोच में । हम युवाओं के साथ युवा बनें ,बच्चों के साथ बच्चे । अपने विचारों को औरों पर थोपने की कोशिश न करें । उनसे इतनी आशाएं  न रखें की छोटी -छोटी बातों पर आहत होना पड़े । आज की पीढ़ी के साथ मिलकर अपने सपने साकार करें । इतनी जगह इस पीढ़ी को दें ताकि इज्जत उधार में न लेनी पड़े। अड़ियल व्यवहार  क्यों रखें ।
                                         आज शाम अपने बगीचे की कुर्सी पर बैठे -बैठे यूँ ही अस्त होते सूर्य को निहार रही थी कि इस सोच ने मुझे झकझोर दिया । आनेवाली वह सुबह नाती -नातिन ,पोते -पोती की अठखेलियों में क्यूँ न गुजार  दें । फिर से बचपन का एहसास जो होगा ,उसे क्यों बर्बाद होने दें । उन मित्रों के साथ हंसी -ख़ुशी क्यों न बाँट लें । अपनी सारी  निराशाओं को एक नया रूप क्यों न दें । घर के अंदर बैठे -बैठे अपने तेज -तरार तानों
से घर के सदस्यों को आहत तो न करें । सालों - साल का कमाया अनुभव क्या ऐसे -ही बेकार होने दें ? नहीं ! अस्त होते सूरज की तरह फिर एक नई  सुबह की तलाश  करें । 
रात  बन कर यूँ न आना तुम ,कि दिन बीत  चूका है। 
  रात बनकर  यूँ आना तुम,कि  कल फिर नई सुबह होगी । 
  नींद से न जागना तुम ,कि ख्वाब टूट चूका है । 
  नींद से यूँ जागना तुम ,कि स्वप्न  साकार करना है । 
  राह चलते -चलते ,न रुक जाना तुम ,कि मंजिल पा चुके हो। 
  राह  चलते -चलते , चलते ही जाना ,कि मंजिल पे मंजिलें बनानी हैं ।


    
         

बुधवार, 12 नवंबर 2014

रामराज्य




रामराज्य की कल्पना हर व्यक्ति करता है । हम सभी एक ऐसी व्यवस्था चाहते हैं ,जहाँ  सकुन की जिन्दगी  बसर कर सकें । यंहा प्रश्न यह उठता है की क्या इस जमीन  को नरक बनाने के लिए हम स्वयं जिम्मेवार नहीं हैं ? क्या हमने अपनी आचार संहिता का पालन किया ? क्या हम अपने दैनिक जीवन में ऐसी गलतियाँ  नहीं करते ,जिनसे हमें शर्मसार होना पड़े ? क्या हम अपने पर्यावरण  को दूषित नहीं करते ? ऐसे बहुत सारे  प्रश्न है जिनका जवाब हमें स्वयं से पूछना चाहिए । सुशासन  की कल्पना करना अच्छी बात है ,परन्तु उसे कार्यान्वित करना भी हमारा फर्ज बनता है। अपने रोजमर्रा की जिन्दगी में इन छोटी -छोटी कल्पनाओं  पर अमल करें ,तो निश्चय ही हम रामराज्य की कल्पनाओं  से रूबरू हो सकते हैं । 

रामराज्य 

रामराज्य ,रामराज्य ,रामराज्य ,हो सारा जहाँ ,
स्वच्छ ,सुन्दर ,स्वस्थ  भारत देश महान । 

ईश्वर ने दिया प्रकृति का दान ,
सस्कृति धर्म की लगी कतार । 
ऋषि -मुनियों की भूमि महान ,
भाषा जाति का भरा भण्डार । 
वरदान स्वरुप मिली विजय । रामराज्य-------

ना  ही वृक्छ कटे ,न ही हमारी धरती धंसे ,
न हो बेघर प्रियजन हमारे ,बेमौत मरें न सखा सहारे । 
सुन्दर हरित धरती की अंगड़ाई ,लाए  न जीवन में महंगाई ,
पॉली बैग का करे तिरस्कार ,धरती का हो नव श्रृंगार । 
प्रदूषण रहित हो हमारा राज्य । रामराज्य -----------

दहेज़ की चिता में न जले ,बहन बेटी किसी की ,
ड्रग के ग्रास में जकड़े न संतान किसी की ,
धर्म की आड़  में न हो छति ,देश की ,
जाति -पांति की होड़ में कलंकित हो न धरती हमारी,
हो सम्मान नारी का ,अधर्म की पराजय । रामराज्य ---------

न हो कुर्सी की लड़ाई ,न पनपे आतंकवाद ,
नेताओं के स्वार्थ में न हो देश निलाम ,
शहीदों के बलिदान को करें सलाम ,
देशप्रेम और शिक्छा का करें सम्मान ,
करें यही कामना मिले हर पथ विजय । रामराज्य --------

जश्न आजादी का बार-बार   मनाएं,
स्वतंत्रता को सलामत रखना सिखाएं ,
हो होंसले बुलंद ,देश का गौरव  हमारी सौगंध ,
अहिंसा अमन का हर पल पाठ  पढ़ाए ,
शांति सन्देश हो सुरमय  । रामराज्य ---------- 
  

मंगलवार, 11 नवंबर 2014

तेरा गर्भ --मेरी कब्र (Your womb, alas, my tomb )

 












However, there is another alarming statistic that has emerged. 


माँ   सुन सकती थी वो लोरी, जो तूने गाई थी
जैसे ही मैं  तेरे , सुन्दर गर्भ मेँ  आई थी ।
तेरा स्पर्श, शायद नहीं था ,मेरा प्रारब्ध
क्योंकि तेरे ही गर्भ मेँ ,खुद गयी मेरी कब्र ।

ओह ! कैसे झूलूंगी ? तेरी बाहों के झूलों में ,
नौ माह की गहरी निद्रा के पश्चात  ।
आह ! समय के प्रवाह ने धीरे से धकेला ,
मुझे उसी कब्र में ,जो खुदी थी तेरे गर्भ मेँ ।

मैंने तेरी गोद  को चाहा था ,सचमुच
यह मेरा सबसे प्यारा घर जो होता
तेरा मधुरआलिंगन, तेरा ममतामयी स्पर्श ,
मुझे और मेरे झूले को ,झूला जो देता ।

हाँ !जब मैं बड़ी होती,सचमुच हर पल
तेरे इन नयनों का तारा  होती ।
निकट भविष्य में  हूबहू तेरी परछाई बन ,
होता मेरा अस्तित्व और मेरी अपनी पहचान ।

माँ! गर  तूने प्रसव पीड़ा झेली होती ,
नारी होकर ,नारीत्व की न होली होती ।
तेरी आभा ,तेरी ममता की ,
भरे बाजार न नीलामी होती ।

किन्तु माँ , मिट गया तेरा-मेरा रिश्ता ,
गर्भपात की, तेरी पातक हरकत से।
माँ नौ माह अगर किया होता तूने सब्र ,
तेरा गर्भाशय ,न बन जाता मेरी कब्र ।


 बेटी दिल के बहुत करीब होती है । मुझे नहीं मालुम  हम स्वयं बेटी होकर बेटी के जन्म लेने पर ,उसे बोझ क्यों समझने लगते हैं । हम यह क्यों भूल जाते हैं कि बेटी तो दहलीज का वह दीपक है जो कमरे के भीतर भी और बाहर भी उजाला फैलाती है । भ्रुण हत्या की न सोचकर उसके उज्जवल भविष्य की कामना कर के देखें ,तो हम पाएंगे कि  वह हमारे दिल के कितने करीब है ।आज की नारी "अबला " नहीं अपितु , उन्नति  है । एक तरफ भावनावों  का सागर है तो दूसरी तरफ शक्ति का आसमान है । हमने उसकी इच्छा समझने की कोशिश  ही नहीं की । वह भ्रुण  जो बेटी के रूप में गर्भ में पल रहा है - माँ से क्या कहना चाहता है मैंने एक छोटी -सी कविता के रूप में पंक्तिबद्ध  किया है । मेरी बेटी नैन्सी बिंदल(Nancy Bindal) की अंग्रेजी में लिखी गयी 'Your womb,alas my tomb' कविता  का हिंदी अनुवाद मैंने किया  है ।

  |'Your womb,alas, my tomb' 

I could hear the lullaby's you sang to me,
As I cuddled up in your womb 
Your embrace was not my destiny
For I descended into the tomb.

Oh ! How I'd fret to be in your arms
After nine months of tender sleep
But I slipped off gently as the sands of time 
Into my grave so deep!

I'd adorn your lap and it sure would be
My favorite place to be
Your firm clasp yet tender touch
Would rock my cradle and me!

When I'd grow up, I certainly would 
Be the twinkle of your eye
One fine day I'd fit into your shoe
And set my ideals high!

I sure would, mama, if only you
Would value your precious treasure
I'd fill your moments with smiles
To time beyond measure!

Your abortive attempt has melted
The abiding relation we'd share
Your womb wouldn't be my tomb
Mama, if only you would care!

गुरुवार, 6 नवंबर 2014

'चेतना '- ड्रग के ताण्डव का अंत

<b>Drug</b> <b>Addiction</b> Prevention




ड्रग :- मैं  दवा हूँ  , मैं नशा हूं ,मैं  विनाश  हूँ ,मैं मृत्यु हूँ । मैं मस्ती देती हूँ ,मैं झुमाती हूँ ,मैं जमीन से आसमान
की शैर कराती हूँ । मेरे  कई रूप हैं -ये देखो ! कोकीन ! अरे वाह !ये हेरोईन !वाह ! क्या कहना । मैं कैफ़िन ,मैं शराब ।  मैं सभी जगह मिलती हूँ -दवा  दुकानों  पर ,बाजारों की  संकीर्ण गलियारों मेँ , स्मगलरों के अड्डों पर ,जँहा चाहो वहाँ मिलती हूँ ।  मेरे बहुत दलाल हैं । मैं  विद्यार्थियों में ,मैं युवाओं में ,मैं युवतियों में ,मैं अमीर में ,मैं  गरीब में ,मैं सभी में प्रवेश कर सकती हूँ । 

चेतना ;- मैं  चेतना  हूँ ,मैं आत्मा हूँ ,मैं जागृति हूँ ,मैं सुख हूँ ,समृद्धि हूँ ,मैं जीवन हूँ । मैं तुममे हूँ ।हाँ - मैं आप में हूँ। घर में ,परिवार में ,समाज में देश में ,विदेश में ,,सभी जगह मेरा एहसास  है ।  मैं विश्व व्यापी हूँ । मैं  ज्ञान हूँ, मैं विद्या हूँ ,मैं अटल हूँ -अमर हूँ ,विनाशहीन हूँ । 

ड्रग ;- विनाशहीन ! कैसी विनाशहीन ? क्या दिया है तुमने दुनिया को ?कर्म ,परिश्रम ,मेहनत ,रुपया ,पैसा और टेंशन । नहीं -मुझे देखो मुझे । मैंने मस्ती दी है ,आत्मसुख दिया है तुम्हे । जिंदगी भर हासिल करने वाला सुख दिया है तुम्हें । आनंद दिया है ,जिम्मेवारियों से छुटकारा दिया है तुम्हें । एक सुखी जीवन ,एक झूमता  जीवन । न काम ,न काज ,न माता ,न पिता ,न परिवार ,न समाज । कुछ टेंशन नहीं । बस मस्ती ही मस्ती । 


चेतना ;- मस्ती ! किसे कहते हो मस्ती ?तुम तो शारारिक और मानसिक यातना हो । पूछो उनसे जो तुम्हारे  शिकार हैं - क्या पाया है उन लोगों ने ? घृणा ,तिरस्कार ,अकेलापन ।  तुम अभिमानी हो ,विनाशक ,तुम  मृत्यु का दूसरा रूप हो । 

ड्रग ;-तुम  मृत्यु का भय पैदा करते हो ,मृत्यु को गले लगाता  हूँ । मैं  लोगों को दुनियादारी से मुक्त कराता हूँ मैं उन्हें सांसारिक बंधनों से ऊपर ले जा कर परम सुख दिलाता हूँ । 

चेतना ;- नहीं ! नहीं !कभी नहीं ।  तुम लोगों का खून  पीते  हो ,उनका स्वास्थ्य हरते हो ,उनकी भावनाएं ,रिश्ते -नाते सब खत्म करते हो । तुम मनुष्य के विनाश में जुटे हो । 

ड्रग ;- हा -हा -हा-हा ! क्या  कहा ? मुँह मियाँ मिट्ठू । संसार से तो एक दिन सबको जाना ही है -

                                        "आयें हैं जो जायेगें ,राजा- रंक- फ़क़ीर । 
                                          एक सिंहासन चढ़ी चलैं ,एक बंधे जंजीर ।।"

हा -हा- हा-हा । ताज पहनों या जंजीर से बंध कर ,जाना तो सभी को है ।  

चेतना ;- वाह रे विनाशी ! नाश हो तेरा । तू क्या जाने ताज को ,तू क्या जाने मीठे बोल को ॥ कितनों के लाल का शोषण किया तूने ,कितनों के घर उजाड़े ,कितनो को लावारिश बना डाला । किसी ने ठीक ही कहा है -
                                        
                                          "दिल के फफोले जल उठे, दिल की ही आग से । 
                                           घर किसी का उजड़ चूका ,ड्रग के ग्रास से ।। " 

उठो विद्यार्थियों ,उठो युवकों ,उठो देशवासियों ,
करो जागृत अपनी चेतना को,
न बर्बाद हो लाल किसी का ,
न शोषित हो रक्त किसी का ,
न ख़त्म हो घर - परिवार किसी का ,
न पतन के गर्त में जाये, देश हम सभी का ,
उठो आवाज दो ,ड्रग को त्याग दो ,
एक जुट हों हम ,विनाश की कगार पर ,
करें ड्रग का विरोध हम,घर -घर, द्वार -द्वार ,
उठो आवाज दो ,ड्रग को त्याग दो ।  



सोमवार, 3 नवंबर 2014

पिता

 



पापा कौन कह्ता है,
तू  माँ से कम है ?
माँ ने गर्भ में रखा ,
तुने गर्भ संवारा है।  
माँ ने जन्म  दिया ,  
तुने चलना सिखाया है। 
माँ ने दूध पिलाया, 
तूने  घोड़ा बन खिलाया है। 
माँ ने सजाया  संवारा, 
तूने  अनेक अरमान जगाए।  
माँ ने ममता लुटाई, 
तूने खून पसीना बहाया। 
माँ ने संस्कार डाले, 
तूने खुब पढाया लिखाया।  
माँ ने जीना सिखाया,
तूने जीने के काबिल बनाया। 
पापा कौन कहता है, 
तू माँ से कम है ?