मंगलवार, 26 जुलाई 2016

मनुष्य - एक सामाजिक प्राणी #neverexistsinisolation

माँ के गर्भ में आते ही जीव 
माँ से जीवन ग्रहण करता ,
जग में अकेले कैसे रह सकता 
घुटने के बल दहलीज लांघता । 
गुरु जनों से ले ज्ञान का भंडार 
लगता जुटाने रोटी ,कपड़ा,मकान
इसप्रकार जीवन के हर कदम पर 
आते हैं  संपर्क में लोग  हज़ार । 
कभी सास ,तो कभी ऑफिस का बॉस 
जब  होता अकेला तो रूक जाती साँस,
एक अकेला नहीं रह सकता प्रसन्न 
यूँ  ही तो  हो जाता  है   डिप्रेसन । 
चाहिए कन्धा कभी रखने को सर 
जब होती उदासी सवार जहन पर ,
अकेलापन जीवन की  खुशियों में रोड़ा है  
मिलना -जुलना साथी संग ,हंसना थोड़ा है।  
है  मनुष्य एक  सामाजिक  प्राणी 
सत्य यही है ,कहती हरेक की वाणी ॥ 

This post is written under the InSpire Topic 

Human beings need someone in their life. Atleast a person to ask occasionally, how one feels now. What's your say on it? #neverexistsinisolation

  

सोमवार, 25 जुलाई 2016

Window Clicks - A foggy day

कर्सियोंग  का कुहासे से भरा एक दिन - अन्य पहाड़ी स्थानों की तरह हमारा यह पहाड़ भी पल -पल में गिरगिट की तरह रंग बदलता रहता है । ३-४ मीटर की दुरी पर भी कुछ नज़र आना बहुत मुश्किल हो जाता है । गाड़ियों पर अगर foglight न हो तो ,सफर किसी खतरे से काम नहीं होता । कुहासे का अपना एक लुत्फ़ होता है । पेड़ -पौधे सिर्फ छाया  के रूप में दीखते हैं ।

मेरे ये कुछ Window Clicks आप सभी के साथ बाँटना चाहूंगी ।
















my cottage in a foggy day 

गुरुवार, 21 जुलाई 2016

शनिवार, 16 जुलाई 2016

बचपन दोबारा जी रही #nostalgia


                                             







याद आती  हैं -
साईकल की छोटी वाली सीट 
हो जाती फ़ैल ,नयी नयी गाड़ियां 
बैठ पापा संग ,सैर का आनंद 
लेती ,राजकुमारी -सा । 

याद आतें हैं -
गुड़ियों के बर्तन ,जिनमे परोस 
खाना  ,स्वयं को शेफ समझती
परिधान सिल गुड़ियों के ,पल में 
बड़ी डिज़ाइनर जो बन जाती । 

याद आते  हैं-
बारिस के वो दिन , बना 
कागज की नाव ,पानी में बहा 
भींग पागलों की तरह 
सुध -बुध खो ,मस्त मौला बन जाती । 

याद  आते हैं -
पतंग का मांजा ,पत्थर की ढेरी
गिल्ली -डंडा और आँख मिचौली 
पोसम -पा हो या शीशे का कंचा 
मिलजुल साथी सब ,स्वतंत्र खेल करते । 

याद आते हैं -
भाई -बहनों संग हुई नोक -झोंक 
एक दूसरे को मुँह चिढ़ाकर 
फिर बाँहों में बाँहे डाल कर 
सातवें आसमान पर होते । 

याद आते हैं -
पड़ोसवाली आंटी की खिल्ली उड़ाना 
फिसलने पर ,ताली बजा -बजा हँसना 
स्कूल के बस्ते में ,इमली छुपाना 
टीचर से नज़र बचा ,छुप-छुप खाना । 

समय बित गया ,बचपन बूढ़ा  हो रहा 
आज बन नानी फिर ,नाती -पोतों संग 
उनकी  नादानी ,चहल -कदमी  और 
अठखेलियों संग, बचपन दोबारा जी रही ।
 

This post is written for the IndiSpire topic "you will find more happiness growing downthan up."Do you wish to relive your chilhood ?#nostalgia 





सोमवार, 4 जुलाई 2016

अंतर्मन की पुकार #forgiveness



क्यूँ  कर क्षमा करूँ मैं 
चोट जमीर पर खाई 
दिल हुआ खंडित शीशे -सा 
अश्रुधारा नैनों से बह चली 
विश्वासघात का प्रहार हुआ 
स्वप्न के परे की कल्पना से 
मुखातिब आज हुआ 
इतना सब सह लेने पर भी 
नींद न आई रात -भर 
करवटें बदलता रहा
अजीब -सी कसमकस में 
अंतर्मन से निकली पुकार 
क्षमा का मिला वरदान 
सांसे लौटी ,हुआ सबेरा 
हल्का हुआ मस्तिष्क 
उधेड़ -बुन से मिली मुक्ति 
हुआ जब यह एहसास 
क्षमादान कठिन ,पर है श्रेष्ठदान ।


This post is written for the Inspire prompt "Forgiveness is not easy to come by. But it is a sign of one's inner strength. What is your take on it?#Forgiveness