गुरुवार, 28 मई 2015

SANTULAN (BALANCE)


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संतुलन


'संतुलन'-- शब्द को हम महज एक शब्द न समझ कर इसके विस्तृत रूप को देखें तो ,हम जानेंगे कि  हमारे सुन्दर जीवन का आधार  ही संतुलन है । जिसप्रकार तराजू पर सटीक तौल जानने के लिए दोनों पलड़ों पर बराबर वजन आवश्यक है ,ठीक उसीप्रकार जीवन के हर क्षेत्र को सुखमयी बनाने के लिए संतुलन जरुरी है । सीधे खड़े रहने के लिए पैरों का संतुलन जरुरी है अन्यथा हमें लचक कर चलना होगा।

जीवन के हर क्षेत्र -मानसिक ,आर्थिक ,सामाजिक,राजनैतिक या अनुशासनिक सभी में संतुलन होना अत्यावश्यक  है ।

कोई विद्यार्थी सिर्फ किताबी कीड़ा बन जाये और खेलकूद ,अनुशासन ,खानपान  इत्यादि के बीच संतुलन न रखे तो वह बीमार पड़ जायेगा ,मानसिक तनाव का शिकार हो जायेगा । हम अगर दिनभर काम -काज में फंसे रहे ,स्वयं के लिए समय न निकाले  तो उच्च रक्त चाप के मरीज हो जायेंगे \

जँहा  तक रिश्तों का सवाल है ,संतुलन की बहुत बड़ी भूमिका है । माता -पिता अगर पुत्र से यही चाहे कि  वह उनकी तहे दिल से सेवा करे ,उनके सारे अरमान पुरे करे और  उसके साथ सात फेरे लेकर आई पत्नी को समय न दे । और दूसरी तरफ बेटा भी स्वार्थी हो जाये ,अपनी बीबी -बच्चों में लगा रहे ,बूढ़े माता -पिता का तनिक भी ख्याल न रखे ,जिन्होंने उसे जन्म दिया ,पाला -पोषा , तो रिश्ते छलनी -छलनी हो जायेंगे । जिंदगी जहर बन जाएगी ।

आर्थिक संतुलन को समझने  के लिए एक ही पंक्ति काफी है -"कमाई अठ्ठनी ,खर्च रुपया "। ऐसा करने पर परिणाम हम भलि भांति समझ सकते हैं ।

किसी बच्चे को हम यूँ अनुशासित करना चाहे कि  वह हमारे सामने मुंह न खोले। आँखे न उठाये तो हम अपनी सोच का संतुलन खो रहे हैं । हमारे और युवा पीढ़ी के बीच खायी खोद रहें हैं ।

"कथनी और करनी " में संतुलन न हो तो राजनैतिक गलियारे में सत्ता पलट सकती है ।

पर्यावरण का भी अगर संतुलन बिगड़ जाये तो चारों ओर तबाही मच जाएगी । प्रकृति प्रितिशोध लेना शुरू कर देगी। धरती को स्वर्ग बनाकर रखना है तो पर्यावरण का संतुलन बनाये रखना होगा ।

स्वास्थ्य ठीक रखने के लिए "आहार "संतुलित न हो तो शारीरिक व्यवस्था कमजोर पड़ सकती है ।
इसप्रकार 'संतुलन ' शब्द को हम बृहत्तर रूप में परिभाषित करें तो पाएंगे कि यह हमारे जीवन का आधार है ।
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 pictures from google

बुधवार, 27 मई 2015

GHADIYALI ANSOO

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घड़ियाली  आँसू 


कैसे सुनाऊ मेरी कहानी ,
मेरी महिमा है अंजानी ,
क्या ख़ुशी ,क्या गम ,
मैं दिखता हर पल ,हर दम  

खुशियों में भी दिख  पड़ता हूँ ,
गम में तो बस बह  पड़ता हूँ ,
चेहरे के भावों से होती मेरी पहचान 
ख़ुशी ,गम सबमें मेरी अलग है शान। 

नन्हे की आँखों में देख मुझे, 
झट माँ  डर  जाती है,
बात जो मनवानी उसे ,
मुझे देख झट बन जाती । 

मै  हूँ चीज बड़ी, 
बड़ों -बड़ों को छल सकता हूँ ,
हर लेता सब दुःख -दर्द ,
जब गालों के पथ बहता हूँ ।

मुझे देख कोई गुर्राए ,
कोई छिप जाने को धमकाए 
कोई मुझसे राग मिलाये ,
तो कोई दूर रहने की कश्में खाए ।

मैं  हूँ घड़ियाली आँसू ,
मुझ पर  यकीन  न करना ,
बहुरूप्या  बन सबकी वाट लगा देता ,
दिन को रात ,रात  को दिन कर देता । 




  

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शनिवार, 9 मई 2015

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ऊँचा मकान ,फीका पकवान

  


आते जाते पहाड़ की घाटी पर 
चायपत्ती के बगीचे खुबसुरत 
मन मोह लिया करते थे 
हरी -भरी झाड़ियाँ  ,
छाया देते लम्बे -पतले  वृक्ष 
प्रकृति की छटा बिखेरते थे । 

न जाने क्या हुआ ,बढती 
जनसंख्या को यह खुबसुरती 
रास न आई ,क्योंकि वहाँ 
नया शहर जो बसना था 
मैदान साफ हुआ ,ऊँची -ऊँची 
अट्टालिकाएं सर उठाये खड़ी हुई । 

ड्यूप्लेक्स बने,पार्क बने 
स्कूल ,क्लब और रेसोर्ट बने 
देखते -देखते खुबसुरत ब्रांडों का 
मॉल यूँ ,हँसता हुआ खड़ा हुआ 
मानो सारी जनता का शॉपिंग के लिए 
अभिनन्दन कर रहा हो । 

मगर ये क्या ?-ये मॉल सिर्फ 
समय बिताने की इमारत बन गयी 
इसकी हंसी फिकी पड़ गयी 
क्यूंकि इसके सामने ,सड़क किनारे 
छोटी -छोटी दुकानें जो खुल गयी 
पांच सितारे की जगह ,लाइन होटल खुल गयी । 

सारी भीड़, तो ये खुमचे वाले
पुचके और चाटवाले ले गए 
हरेक माल बीस ,पचास और सौ 
रूपये चिल्लाने वाले बेच गए 
जिंदगी की यही हकीकत है 
ऊँचा मकान  फीका पकवान । 
Vendors set up nameless stalls outside Jayanagar Shopping Complex, claiming that they face trouble from neither the municipal body nor the police | Nagaraj GadekalImage result for images of footpath shopping in indian villagesImage result for images of footpath shopping in indian villages
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