एक छोटी मगर बड़ी दर्दनाक घटना आप सबके साथ साझा करना चाहूँगी । सुमित झंवर , मेरा एक student, जिसके लिए दिवाली की चकाचौंध कर देने वाली रोशनी सदा के लिए अँधेरा बन गयी । उसकी कहानी उसकी जुबानी -
"दीपावली का दिन ,मैं और मेरे दोस्त बड़े ही उत्साहित थे। दीपों की झिलमिलाहट ,पटाकों का शोर ,सुन्दर -सुन्दर परिधान और मिठाइयों की खुशबू ,हमें और भी उत्साहित कर रही थी । विशेषकर बच्चों को पटाकों का बड़ा शौक होता है । मैं भी पटाके छोड़ने के लिए लालायित था । अपने दोस्तों के साथ मैं जैसे ही पटाकों का आनंद ले रहा था कि अचानक पटाके की सुलगती चिंगारी मेरी आँखों में घुस गयी । देखते ही देखते मेरी आँख से खून बहने लगा । मैं और मेरे दोस्त घबरा गए । पीड़ा के साथ -साथ मुझे मेरे माता - पिता का सामना करने में भी डर लग रहा था । दोस्तों की सहायता से मैं घर लाया गया । मेरे माता - पिता यह हालत देख घबरा गये । मुझे हॉस्पिटल लाया गया । डॉक्टर ने जाँच के बाद बताया की मेरी आँख के दो टुकड़े हो गए हैं ।
कुछ प्राथमिक इलाज के बाद मुझे चेन्नई के "शंकर नेत्रालय " ले जाया गया । यहाँ भी डॉक्टर्स ने जाँच के बाद यह फैसला सुनाया की मेरी आँख को बचाया नहीं जा सकता ,तथा शरीर के अन्य भाग में इसका इन्फेक्शन न फ़ैले ,मेरी आँख को पूर्णतया निकालने का फैसला लिया गया । दूसरे दिन मेरी दाहिनी आँख निकाल दी गयी । मेरी छोटी -सी लापरवाही ने मेरी यह 'रौशनी ' तो मुझ से छीन ही ली साथ - ही -साथ मेरे माता -पिता, प्रियजनों के चेहरे पर भी उदासी लिख दी । मुझे कृत्रिम आँख का सहारा लेना पड़ा ।"
इसी सन्दर्भ में मैं अपने Indiblogger के पाठकों से यह कहना चाहूंगी के दीपावली मनाएं ,खूब धूमधाम -से मनाये परन्तु पटाकों से दूर रहें तथा पूरी सावधानी बरतें । त्योंहार ख़ुशी देने के लिए होते है ,उनका दुर्पयोग जीवन में गम छोड़ जाता है । लापरवाही जीवन में हादसा बन कर आ सकती है । कहीं यह जगमगाती चिंगारी आपकी जिंदगी का हादसा न बन जाये ।
एक तरफ हम धन के लिए लक्ष्मी की पूजा करते हैं ताकि हमारा घर धन से सम्पन्न हो ,दूसरी तरफ धन फ़िज़ूल में व्यर्थ करते है। इस व्यर्थ धन से हम कितने भूखों का पेट भर सकते है । आज बढ़ते प्रदुषण को और बढ़ावा देते हैं । ये कहाँ तक तर्कसंगत है । जहाँ स्वास्थ्य हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए वंहा खाने पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता । जिह्वा के स्वाद के सामने स्वास्थ्य मात खा जाता है ।
अंत में मैं यही कहूँगी -
रंग -विरंगे बल्ब झपा -झप ,महलों में जलते हैं,
ट्यूब लाइट के नीचे बाबू लक्ष्मी को छलते है ।
महलों में बजती ताली ,झोपड़ियों में ताला है ,
महलों में मनती दिवाली , झोपड़ियों में दिवाला है।
2 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर कविता लिखी है आपने.... अगर सभी थोड़ा सा विचार कर पूरे संसार को खूबसूरत बनाने की कोशिश करें तो कितना अच्छा हो.... मुझे खेद है की बच्चे जब पटाखे चलाते हुए हादसों का शिकार होते हैं.... बड़े होने के नाते हमारा कर्त्तव्य है कि उन पर नज़र रखें और उनकी सुरक्षा पर ध्यान दें।
हृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.बहुत शानदार
बहुत सुन्दर
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