सोमवार, 24 अगस्त 2015

कल और आज #Poetryonopposites

कल बचपन था, आज बुढ़ापा
तब चहल -पहल थी ,आज शुनशान
मिठी लगती थी तब,घुघनीवाले की घुघनी
केले के पत्ते में ,पत्ते की ही  चमच से
प्याज और धनिया ,चाट -चाट कर खाना
खट्टी हो गयी है चॉकलेट भी आज
फोफले हो गए गाल,गिर गए सारे दाँत
तब केले के पत्ते में ,खाकर स्वाद आता था
पिज्जा आज कीमती क्रॉकरी में बेस्वाद लगता है
मटकी का पानी भी ठंडा और  स्वच्छ लगता था
आज फ्रीज़ भी गर्म और आर.ओ भी अस्वछ्च है
बचपन में ज्यादा खाने पर भी पच जाता था
इस बुढ़ापे में थोड़ा खाते  ही अपच हो जाती है
कल 'पोशम्पा' का खेल भी स्फूर्ति देता था
आज तो  ताश के पत्ते भी थका देते हैं
कल एक ही ईशारे पर ,दोस्त दौड़ आते थे
आज अनेक बार बुलाने पर बहाने ढूंढते हैं
कल पॉकेट में एक पैसा न था ,फिर भी
मदमस्त ,चहकते ,बेपरवाह खेलते थे
आज ढेर सारा बैंक -बैलेंस ,जमीं -जायदाद है
पर वही उदासी ,मुरझाना ,सबकी परवाह है
कल बचपन था, आज बुढ़ापा
तब चहल - पहल थी ,आज शुनशान ।