जैसे ही एक दिन ,अपनी ऑफिस में घुसी
एक छोटी -सी चिड़िया ,चोंच में लिए मिट्टी
खिड़की से होकर बायीं दिवार से चिपकी
रोज यूँही तिनके बिटोर खिड़की से आती ।
धीरे -धीरे उसने घोंसला एक सुन्दर बनाया
छोटे -छोटे अंडे पांच , नीड़ उसने अपना सजाया
बैठी रहती पंख फैलाए ,उन अण्डों को गरमाया ।
सुनी सुबह ,मीठी ची -ची की आवाज
नन्हें -नन्हें चोंच खोलते चूजे निकले पांच
माँ चिड़िया लुटाने ममता ,थी बड़ी मेहरबान।
माँ बच्चों को दूध पिलाती ,बहुतेरा देखा है
माँ चिड़िया का ममत्व, तो पहली बार देखा है
बार -बार उड़ती ,दाना सहेज ,चोंच भर लाती
देख माँ को आते ,नन्हें चूजे करते चूँ -चूँ
दाना दुनकर बड़े प्यार से ,भूख मिटाती वो यूँ
खड़े पास में देख किसी को ,डरकर सहम जाती
कोई बच्चोँ को छीने ,सोच मौन हो जाती ।
क्या तुलना करे हम ,इस बेजुबान से
माया -ममता कम नहीं ,माँ हो किसी जहान से
सीखा उड़ना ,स्वतंत्र छोड़ देती नभ में
मनुष्यों-सा बंधन नहीं,आज़ाद पंक्षी ये, गगन के ।
2 टिप्पणियां:
bahut badhiya... :-)
Cheers, Archana - www.drishti.co
thanks archana for your encouraging comment.I have uploaded a real video taken by me,with which this whole poem was related,video was uploaded ,but was not being played.
I love your writings.
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