ओस ने की ख्वाहिश गुलाब से
जी चाहता है भर लूँ आलिंगन में
जो देखती हूँ तुझे काँटों में पलते
फिर भी रहते सदा मुस्कराते
हँसते -हँसाते और मुस्कराते ।
जी चाहता है तेरे आलिंगन में
गुजर जाए छोटा-सा जीवन मेरा
तेरे जैसे राजा की रानी बन
सीखूं काँटों के बीच जीना
हंसना -हँसाना और खिलखिलाना ।
सुन बात ओस की ,गुलाब ने कहा -
कभी मुरझा जाता था जल्दी
पाकर अकेला स्वयं को
जब मिला स्पर्श तेरा
फिर से जीने की चाह जगी ।
तेरे आलिंगन मात्र से
मोतियों से सज गया हूँ
भींगा -भींगा -सा ,मस्त
पवन में तरो -ताज़ा हो, तेरी
चाहत का दीवाना हो गया हूँ ।
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3 टिप्पणियां:
bahut khoob :-)
Felt good reading a Hindi poem. Nice lines. :0
thanks Archana and Indrani
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