स्वतंत्रता के लिए ,जब चढ़ गए फांसी पर
वीर भगतसिंह और चंद्रशेखर आज़ाद
अहिंसा के सैनानी ,लड़ गए अपनी जान पर
तब 15 अगस्त 1947 ने सुनी स्वतंत्रता की हुंकार
अंग्रेजों के चंगुल से ,भारत हुआ आज़ाद ।
सोहरत कमाई ,तरक्की और तकनिकी पाई
शिक्षा ,संस्कृति ,धीरे -धीरे आगे बढ़ी
बैलगाड़ी से हवाईजहाज बन गए हम
डॉक्टर ,इंजीनियर और वैज्ञानिक हो, अस्तित्व
और पहचान की तलाश में ,छोड़ गए अपना वतन।
जश्न सजने लगे , खुशियाँ मनने लगी
संस्कृति ,सदाचार ,कर्मठता भूले हम
कुर्सी की लड़ाई में, शहीदों की शहादत हुई कुर्बान
पार्टी -पॉलिटिक्स चलने लगी ,मानवता बिकने लगी
भ्रष्टाचार ,आतंक ,बलात्कार व घोटाले पनपने लगे ।
हिसाब -किताब की बारी आई ,तो काले झंडे लहराए
'मै नहीं तुम' की लड़ाई और जोरों से गहराई
मै पूछती हूँ स्वयं से ,क्या है भागीदारी मेरी
वोट देने का हक़ भी हमने ,भलिप्रकार न निभाया
सारा दोष मंढ सरकार के माथे ,ऐश -आराम फ़रमाया ।
जब तक जमीर न जागेगा ,हाथ अग्रसर न होंगे
चेतना जागृत न होगी ,कर्मठता सोयी रहेगी
जिम्मेदारी नहीं तय ,आरोप-प्रत्यारोप लगते रहे तो
मेरे देशवासियों ! रहेंगे गुलाम हम अपने ही हाथों
यूँही कटेगी जिंदगी ,न ले सकेंगे स्वतंत्रता की साँस।
पूर्ण आज़ादी मिलेगी तब ,होंगे जब सहस्त्र हाथ संग
स्वच्छता हो, बलात्कार चाहे हो भ्रष्टाचार
सब मिट जायेंगे ,होंगे जब स्वयं ईमानदार
मुझसे समाज ,समाज से देश -सोच यह अपना लो
छंट जायेंगे 68 साल के काले बादल ,देश होगा महान ।
1 टिप्पणी:
dhanyavad Rajneesh ji
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