सोमवार, 24 अगस्त 2015
बुधवार, 19 अगस्त 2015
ओस की ख्वाहिश
ओस ने की ख्वाहिश गुलाब से
जी चाहता है भर लूँ आलिंगन में
जो देखती हूँ तुझे काँटों में पलते
फिर भी रहते सदा मुस्कराते
हँसते -हँसाते और मुस्कराते ।
जी चाहता है तेरे आलिंगन में
गुजर जाए छोटा-सा जीवन मेरा
तेरे जैसे राजा की रानी बन
सीखूं काँटों के बीच जीना
हंसना -हँसाना और खिलखिलाना ।
सुन बात ओस की ,गुलाब ने कहा -
कभी मुरझा जाता था जल्दी
पाकर अकेला स्वयं को
जब मिला स्पर्श तेरा
फिर से जीने की चाह जगी ।
तेरे आलिंगन मात्र से
मोतियों से सज गया हूँ
भींगा -भींगा -सा ,मस्त
पवन में तरो -ताज़ा हो, तेरी
चाहत का दीवाना हो गया हूँ ।
,
सोमवार, 17 अगस्त 2015
स्वाधीनता के 68 साल
स्वतंत्रता के लिए ,जब चढ़ गए फांसी पर
वीर भगतसिंह और चंद्रशेखर आज़ाद
अहिंसा के सैनानी ,लड़ गए अपनी जान पर
तब 15 अगस्त 1947 ने सुनी स्वतंत्रता की हुंकार
अंग्रेजों के चंगुल से ,भारत हुआ आज़ाद ।
सोहरत कमाई ,तरक्की और तकनिकी पाई
शिक्षा ,संस्कृति ,धीरे -धीरे आगे बढ़ी
बैलगाड़ी से हवाईजहाज बन गए हम
डॉक्टर ,इंजीनियर और वैज्ञानिक हो, अस्तित्व
और पहचान की तलाश में ,छोड़ गए अपना वतन।
जश्न सजने लगे , खुशियाँ मनने लगी
संस्कृति ,सदाचार ,कर्मठता भूले हम
कुर्सी की लड़ाई में, शहीदों की शहादत हुई कुर्बान
पार्टी -पॉलिटिक्स चलने लगी ,मानवता बिकने लगी
भ्रष्टाचार ,आतंक ,बलात्कार व घोटाले पनपने लगे ।
हिसाब -किताब की बारी आई ,तो काले झंडे लहराए
'मै नहीं तुम' की लड़ाई और जोरों से गहराई
मै पूछती हूँ स्वयं से ,क्या है भागीदारी मेरी
वोट देने का हक़ भी हमने ,भलिप्रकार न निभाया
सारा दोष मंढ सरकार के माथे ,ऐश -आराम फ़रमाया ।
जब तक जमीर न जागेगा ,हाथ अग्रसर न होंगे
चेतना जागृत न होगी ,कर्मठता सोयी रहेगी
जिम्मेदारी नहीं तय ,आरोप-प्रत्यारोप लगते रहे तो
मेरे देशवासियों ! रहेंगे गुलाम हम अपने ही हाथों
यूँही कटेगी जिंदगी ,न ले सकेंगे स्वतंत्रता की साँस।
पूर्ण आज़ादी मिलेगी तब ,होंगे जब सहस्त्र हाथ संग
स्वच्छता हो, बलात्कार चाहे हो भ्रष्टाचार
सब मिट जायेंगे ,होंगे जब स्वयं ईमानदार
मुझसे समाज ,समाज से देश -सोच यह अपना लो
छंट जायेंगे 68 साल के काले बादल ,देश होगा महान ।
शनिवार, 8 अगस्त 2015
आज़ाद पंक्षी ये गगन के
जैसे ही एक दिन ,अपनी ऑफिस में घुसी
एक छोटी -सी चिड़िया ,चोंच में लिए मिट्टी
खिड़की से होकर बायीं दिवार से चिपकी
रोज यूँही तिनके बिटोर खिड़की से आती ।
धीरे -धीरे उसने घोंसला एक सुन्दर बनाया
छोटे -छोटे अंडे पांच , नीड़ उसने अपना सजाया
बैठी रहती पंख फैलाए ,उन अण्डों को गरमाया ।
सुनी सुबह ,मीठी ची -ची की आवाज
नन्हें -नन्हें चोंच खोलते चूजे निकले पांच
माँ चिड़िया लुटाने ममता ,थी बड़ी मेहरबान।
माँ बच्चों को दूध पिलाती ,बहुतेरा देखा है
माँ चिड़िया का ममत्व, तो पहली बार देखा है
बार -बार उड़ती ,दाना सहेज ,चोंच भर लाती
देख माँ को आते ,नन्हें चूजे करते चूँ -चूँ
दाना दुनकर बड़े प्यार से ,भूख मिटाती वो यूँ
खड़े पास में देख किसी को ,डरकर सहम जाती
कोई बच्चोँ को छीने ,सोच मौन हो जाती ।
क्या तुलना करे हम ,इस बेजुबान से
माया -ममता कम नहीं ,माँ हो किसी जहान से
सीखा उड़ना ,स्वतंत्र छोड़ देती नभ में
मनुष्यों-सा बंधन नहीं,आज़ाद पंक्षी ये, गगन के ।
गुरुवार, 6 अगस्त 2015
IS RESERVATION FAIR#ARSHAN UNNATI YA AVANATI
Is Reservation Fair #आरक्षण उन्नति या अवनति
आरक्षण शब्द सुनने में तो बड़ा आरामदायक लगता है । जहाँ तक हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी का सवाल है आरक्षण बड़ा उपयोगी है । जब कभी हॉटेल और रेस्टॉरेन्ट में पार्टी देते है ,अपनी लम्बी चौड़ी टेबल पर 'reserved' देखकर बड़ी प्रसन्नता होती है । रेल में सवार करते वक्त अपनी टिकट पर सीट नंबर के आगे 'confirmed' देखकर एक ठंडी व लम्बी साँस ले लेते हैं । सिनेमा हॉल में जाएँ और अपनी टिकट बूकिंग 'online' हो तो फिर क्या कहना ,आराम से पैर फैलाये और पिक्चर का आनंद लें । क्यूँ ?
अगर रोज़मर्रा की जिंदगी से हटकर देखें तो आरक्षण का जटिल रूप सामने आता है । क्या सचमुच में ये आरक्षण साहब देव है या दानव ?आरक्षण का जन्म जबसे उच्च शैक्षिक संस्थानों ,सरकारी नौकरियों , सरकारी ठेकों आदि में हुआ है - यह विवाद का विषय बन गया है । जो लोग निम्न वर्ग के लोगों को 'अछूत ' समझते थे ,आज वे SC/ST/OBC अपने नाम के सामने लगाने में कोई परहेज नहीं रखते ,न ही शर्म महसूस करते हैं ।
हमारी देश की स्वाधीनता के बाद आर्थिक रुप से पिछड़े वर्ग के लोगों को खेती की जमीन दी गई ताकि वे अपनी रोजीरोटी कमा सकें । धीरे -धीरे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी यह अनुदान जारी रहा और हमारे राजनेतागण इसे वोट बैंक का आधार बनाते रहे । राजनैतिक गलियारे में वोट की रक्षा के लिए ढाल के रूप में काम आने लगा ।
कुछ हद तक आरक्षण का समर्थन आर्थिक रूप से जो लोग कमजोर है , जँहा वास्तविकता में भूखमरी है - उचित है । आरक्षण के अलावा इस समस्या का अन्य समाधान भी निकल सकता है । आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थियों को SHCHOLARSHIP ,फीस में छूट आदि अन्य व्यवस्था की जा सकती है । सरकारी स्कूल ,कॉलेज का स्तर बढ़ाया जाना चाहिए ,आधुनिकीकरण किया जाना चाहिए ,योग्य व सक्ष्म शिक्षकों की नियुक्ति की जानी चाहिए । जिसका सीधा लाभ गरीब विद्यार्थियों को मिल सके ।
"GIVE A MAN FISH : YOU HAVE FED HIM FOR TODAY. TEACH A MAN TO FISH ; AND YOU HAVE FED HIM FOR A LIFETIME,"
IIT,IIM,MEDICAL संस्थानों में आरक्षण जाति के आधार पर ख़त्म कर देना चाहिए । इस प्रथा के चक्कर में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है , फर्जी सर्टिफिकेट्स बनने लगे हैं । स्वयं को SC/ST/OBC साबित करने की होड़ लगी हुई है ।
दूसरी तरफ मेधावी छात्रों को दाखिला ही नहीं मिल पा रहा है । क्या हम हमारे देश की प्रतिभाओं को पीछे छोड़ , जातिवाद को आगे बढ़ा प्रगतिशील भारत की नींव मजबूत कर सकते हैं ? आज हम भारतवासी स्वयं को जाट , हिन्दू मुस्लिम , सिख , इशाई ,कश्मीरी ,ट्राइबल में विभाजित कर रहें हैं । इस आरक्षण की आड़ में क्या हम प्रतिभाशाली डॉक्टर ,इंजीनियर ,IITIAN, IIM'S ,राजनेता को पनपने से रोक नहीं रहे ?????
रविवार, 2 अगस्त 2015
Hamara Ashiyana
हमारा आशियाना
सारी दुनिया का भ्रमण क्यों न कर लें, आखिर शकुन तो अपने घर आकर ही मिलता है । "अपना घर " जिंदगी में बहुत मायने रखता है ।
'बेलेभ्यू कॉटेज'- यह हमारा प्यारा -सा आशियाना है । सन 1857 में अंग्रेजों के शासन के दौरान बनी यह कुटी ,158 साल पुरानी धरोहर हो गयी है । पश्चिम बंगाल के कर्सियांग ( दार्जीलिंग ) शहर में हमारा यह छोटा -सा घर है । यँहा के पूर्वज व बासिंदे इसे " जहाज कोठी " व " शिशा कोठी " के नाम से जानते हैं । जहाज कोठी -क्योंकि इसका अकार जहाज (ship) जैसा है तथा "शीशा कोठी - क्योंकि इसके चोरों तरफ शीशे ही शीशे लगे थे । इसका वास्तविक नाम जो मील साहब ने दिया था है - BELLE VUE COTTAGE , आज भी यह name plate गेट पर लगी है ।
प्रकृति की गोद में बसी यह कुटी अपने - आप में बड़ी अनूठी है । इसके उत्तर में हिमालय की चोटी 'कंचनजंघा 'अपनी चांदी -सी चमक बिखेरती है ,तो पूर्व में प्रातःकाल 'सूर्योदय अपना अद्भुत नज़ारा पेश कर सुबह का स्वागत करता है । दूसरी तरफ दक्षिण में 'सिलीगुड़ी ' शहर इसकी एक ही खिड़की में समां जाता है तो पश्चिम में संध्या समय 'सूर्यास्त 'भी अपने पुरे यौवन में होता है । पल में कुहासे के बादल छु जाते हैं तो दूसरे पल सूर्य की किरणें ।
नभ को छूते लम्बे -लम्बे देवदार के वृक्ष ,बादलों से वाष्प ग्रहण कर इसके चारों और जमीं को भिगोते है । चायपत्ती के बगीचे यूँ प्रतीत होते हैं ,जैसे मोटा -सारा हरा गलीचा ,इसके आस -पास बिछा दिया गया हो । इन्ही बागानों के मध्य कैद होता है 'धोबी -खोला '(झरना ),जिसकी कल -कल कर बहने की आवाज प्रातःकाल के सन्नाटे में संगीत भर देती है ।
प्रकृति की गोद में बसी यह कुटी अपने - आप में बड़ी अनूठी है । इसके उत्तर में हिमालय की चोटी 'कंचनजंघा 'अपनी चांदी -सी चमक बिखेरती है ,तो पूर्व में प्रातःकाल 'सूर्योदय अपना अद्भुत नज़ारा पेश कर सुबह का स्वागत करता है । दूसरी तरफ दक्षिण में 'सिलीगुड़ी ' शहर इसकी एक ही खिड़की में समां जाता है तो पश्चिम में संध्या समय 'सूर्यास्त 'भी अपने पुरे यौवन में होता है । पल में कुहासे के बादल छु जाते हैं तो दूसरे पल सूर्य की किरणें ।
नभ को छूते लम्बे -लम्बे देवदार के वृक्ष ,बादलों से वाष्प ग्रहण कर इसके चारों और जमीं को भिगोते है । चायपत्ती के बगीचे यूँ प्रतीत होते हैं ,जैसे मोटा -सारा हरा गलीचा ,इसके आस -पास बिछा दिया गया हो । इन्ही बागानों के मध्य कैद होता है 'धोबी -खोला '(झरना ),जिसकी कल -कल कर बहने की आवाज प्रातःकाल के सन्नाटे में संगीत भर देती है ।
जैसे -जैसे रात नजदीक आती है ,हमारे इस आशियाने के चारों तरफ 'दीवाली ' मनने लगती है । बाहर बगीचे में खड़े होकर घूम कर देखें तो दिल में बस जाने वाला वह नज़ारा नजर आता है ,जो किसी पर्वतीय स्थल की चोटी से । चारों तरफ ऊँचे -ऊँचे पर्वतो पर बसे छोटे -छोटे गांवों ममे जलती बत्तियाँ 'दीवाली 'व 'टिम -टिमाते तारों' -सा नज़ारा पेश करती है ।
चौड़े और मोटे -मोटे पत्थरों से बनी इसकी दीवारें ,जो 24 " मोटी हैं ,पुरातन धरोहर का स्वयं परिचय देती है । कोठी के अंदर की कारीगरी भी कोई कम नहीं । अंग्रेजों के ज़माने से बने fire places, चिमनी , ऊँची -ऊँची बर्मा टीक की सीलिंग , फर्श स्वयं अनूठे हैं ।
समय और जरुरत के अनुसार कुछ परिवर्तन इसमें हमने किये हैं । हमारी यह कुटी (Belle Vue Cottage) किसी स्वर्ग से काम नहीं है ।
समय और जरुरत के अनुसार कुछ परिवर्तन इसमें हमने किये हैं । हमारी यह कुटी (Belle Vue Cottage) किसी स्वर्ग से काम नहीं है ।
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