बुधवार, 2 सितंबर 2015

प्रेम का पर्याय -" घीसा "



voice-Archana Chauji


प्यार का दायरा बहुत विस्तृत होता है।  ढाई अक्षर का यह 'प्रेम' ही वह शब्द है ,जो हर तरह के  रिश्तों  को बांध कर रखता है।

उपर्युक्त audio में लेखिका महादेवी वर्मा द्वारा रचित कहानी 'घीसा' भाषित की गयी है । इस कहानी में गुरूजी (महादेवी वर्मा जी ) का गड़ेरियों  व ग्वालों  के अल्हड़  बच्चों के प्रति प्रेम व लगाव दर्शाया गया है। "घीसा " एक ऐसा बालक है जो अत्याधिक गरीब दुबला -पतला व कुपोषण का शिकार है।

गुरु के प्रति इसका प्रेम हम भलीप्रकार समझ सकते हैं  जब वह सुबह  पहले आकर  पेड़ के नीचे की जगह अपने गमछे से प्रतिदिन सफा करता है। गुरूजी की सीट चमकाता है ,भींगा  कुर्ता पहन कर आता  है जब गुरूजी स्वच्छ रहने की सलाह  देती है । अपना नया कुर्ता बेचकर  अपनी पूज्यनीया  गुरु जी के लिए उपहार लाता है   ,वे हिन्दू  -मुस्लिम दंगों के चपेट में ना आ  जाये - यह सोचकर ज्वर से ग्रस्त होने के बावजूद भी  अपनी झोपड़ी से अकेला उन्हें खोजने निकल पड़ता है । तरबूज सफ़ेद न निकल जाए - थोड़ा -सा कटवाकर ,अंगुली से चखता है । यह एक ऐसा प्रेम है जो आँखों को भी नम कर देता है।

दूसरी ओर  गुरूजी एक प्रतिष्ठित लेखिका होने के बावजूद भी ,जब भी अवकास मिलता गंगा किनारे इस झुग्गी -झोपड़ी के इलाके में इन गरीब बच्चों के साथ अपना अवकास बिताती ,उन्हें पढ़ाती -लिखाती ,स्वच्छता का महत्व बताती । दुबारा फिर किसी अवकास के वक्त वे गंगा किनारे इन बच्चों के बीच आती हैं ओर उन्हें मालूम पड़ता है कि  घीसा तो अपने भगवान को प्यारा हो गया है तो अन्य बच्चों में ही उसकी छवि ढूंढती है ।  यानि उनकी अपने कार्य में निःस्वार्थ  संलगनता -उन बच्चों  के प्रति प्रेम नहीं तो क्या है ? अपने कर्तब्य के प्रति लगाव नहीं तो क्या है ?  हाँ यह एक ऐसी  LOVE STORY है जो  मेरे दिल को सिर्फ  छू ही नहीं गयी अपितु   निःसंदेह प्रेरणा का श्रोत है ।   

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

साभार धन्यवाद