बुधवार, 22 जुलाई 2015

PAPA KE CHASHME SE---

पापा के चश्मे से- 


देखना चाहती हूँ 

वह सब, 
जो पापा ने देखा था । 
एक छोटे -से गांव से 
शहर तक का सफर, 
बड़ी सफलता से 
अहसास किया था ।  
मुझे क्यों --
धुंधला दिखता है ? 
शायद - 
उम्र का तकाजा नहीं ,
जो इस चश्मे को है।  
देखना चाहती हूँ -
वह हंसी -मुस्कराहट ,
वह संजीदगी व सादगी, 
वह निःस्वार्थ कामयाबी, 
वह अल्हड़पन -नादानी 
 जिसने संवारा जीवन 
धुंधला ही सही -
देखना चाहती हूँ -
वह दुनियादारी -रिश्ते 
वे गुजरे पल 
समाई जिसमें सारी यादें।  
हाँ -चश्मे के इस 
धुंधलके में -
कुछ -कुछ दिखने लगा है ,
हूबहू वही चेहरा 
जो मेरे -
पापा का है । 
My father gave me the greatest gift anyone could give another person, he believed in me. - Jim Valvano
      
 DEDICATED TO MY BELOVED FATHER ON HIS 7TH DEATH ANNIVERSARY.  
 

1 टिप्पणी:

Saru Singhal ने कहा…

We all wish to live or get a glimpse of what our parents have experienced. May be, we will with age.

A very beautiful poem.