याद आती हैं -
साईकल की छोटी वाली सीट
हो जाती फ़ैल ,नयी नयी गाड़ियां
बैठ पापा संग ,सैर का आनंद
लेती ,राजकुमारी -सा ।
याद आतें हैं -
गुड़ियों के बर्तन ,जिनमे परोस
खाना ,स्वयं को शेफ समझती
परिधान सिल गुड़ियों के ,पल में
बड़ी डिज़ाइनर जो बन जाती ।
याद आते हैं-
बारिस के वो दिन , बना
कागज की नाव ,पानी में बहा
भींग पागलों की तरह
सुध -बुध खो ,मस्त मौला बन जाती ।
याद आते हैं -
पतंग का मांजा ,पत्थर की ढेरी
गिल्ली -डंडा और आँख मिचौली
पोसम -पा हो या शीशे का कंचा
मिलजुल साथी सब ,स्वतंत्र खेल करते ।
याद आते हैं -
भाई -बहनों संग हुई नोक -झोंक
एक दूसरे को मुँह चिढ़ाकर
फिर बाँहों में बाँहे डाल कर
सातवें आसमान पर होते ।
याद आते हैं -
पड़ोसवाली आंटी की खिल्ली उड़ाना
फिसलने पर ,ताली बजा -बजा हँसना
स्कूल के बस्ते में ,इमली छुपाना
टीचर से नज़र बचा ,छुप-छुप खाना ।
समय बित गया ,बचपन बूढ़ा हो रहा
आज बन नानी फिर ,नाती -पोतों संग
उनकी नादानी ,चहल -कदमी और
अठखेलियों संग, बचपन दोबारा जी रही ।
This post is written for the IndiSpire topic "you will find more happiness growing downthan up."Do you wish to relive your chilhood ?#nostalgia
2 टिप्पणियां:
nani ban bachpan jeena bhi bahut khubsurat ahsaas hai....:)
vastav men ek sundar anubhuti
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