माँ के गर्भ में आते ही जीव
माँ से जीवन ग्रहण करता ,
जग में अकेले कैसे रह सकता
घुटने के बल दहलीज लांघता ।
गुरु जनों से ले ज्ञान का भंडार
लगता जुटाने रोटी ,कपड़ा,मकान
इसप्रकार जीवन के हर कदम पर
आते हैं संपर्क में लोग हज़ार ।
कभी सास ,तो कभी ऑफिस का बॉस
जब होता अकेला तो रूक जाती साँस,
एक अकेला नहीं रह सकता प्रसन्न
यूँ ही तो हो जाता है डिप्रेसन ।
चाहिए कन्धा कभी रखने को सर
जब होती उदासी सवार जहन पर ,
अकेलापन जीवन की खुशियों में रोड़ा है
मिलना -जुलना साथी संग ,हंसना थोड़ा है।
है मनुष्य एक सामाजिक प्राणी
सत्य यही है ,कहती हरेक की वाणी ॥
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