रोज की तरह
बैठी थी आज भी
अपनी दफ्तर की कुर्सी पर
कुछ फाइल देख रही थी
कि मीठा -सा गीत
कानों को सुरीला लगा
धीरे -से पलकें उठी
होठों पर मुस्कराहट
घौंसले में फिर -से दिखे
चिड़िया के बच्चे चार
गीत सुरीला चूं -चूं का था
एकबार फिर मन मोहित हुआ
जिस तरह पिछली साल ॥
3 टिप्पणियां:
..bahut sundar!
thanks pankaj, Amit ji
Loved it mam :-) So nice
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