गुरुवार, 23 जून 2016

सांवली #thatstory


जब बन दुल्हन पिया संग
ससुराल अपने चली आई
साल -दो -साल में बिटिया प्यारी
मेरे  आँगन है मुस्कराई
उसकी तुतली बातों में
पिया की मस्त भरी बाहों में
दो साल फिर गुजर गए
गोदी में फिर से जुड़वां ने
धीमी मुस्कराहट से दस्तक दी
तीनो बेटियों संग रचा यह संसार
उनकी अठखेलियां ,बन गयी
जीवन की पर्याय ।

बड़े -बुजुर्गों से दबाब आने लगा
बेटियों को एक भाई तो चाहिए
मन ही मन कसोस रही थी
न है शक्ति मुझमें ,न क्षमता
सुझाव आया एक बेटा गोद ले लूँ
समझ ना पा  रही थी ,क्या दे
सकुंगी - प्यार किसी पराई जान को
जो अपनी कोख को दे रही हूँ
फिर भी स्वयं को समझाया ,
बहलाया ,की बेटा  तो चाहिए
वंशबृद्धि को ,या बहनो को भाई
इस उथल -पुथल में ले आई
अपनी गोदी में एक अनाथ फूल
परिवार की खुशियां सातवां
आसमान छू रही थी ,बेटियां पा
भाई ख़ुशी से मचल रही थी ।

आई फिर वह अपशकुन घड़ी
इस प्यार को डस  गयी एक भूल
खेलते -खेलते सीढ़ियों से यूँ गिरा
आँखे बूझ गयी चिरकाल  को
खुशियां प्यार सब लूट गया
पश्चाताप की गहन अग्नि में
बेवजह बेटे का क्यों मोह लगाया
ना चाह कर भी गले से लगाया
जीवन का अभिन्न अंग बनाया 
अपनी जान से भी ज्यादा चाहा
क्या यह एक अकाल्पनिक पश्चाताप नहीं ?


This is posted under the Indi spire topic"Loving is not always an easy task. Love comes with it's share of pain and guilt. Share a story or invent one where that pain is revealed in a form unimaginable, in a direction not-thought."






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