रावण के सिर दस थे ,पर दिमाग एक
हमारा देश एक परन्तु नेता अनेक
उठ-बैठ ,भला -बुरा ,कुर्सी की होड़ में करते
ऐसो-आराम ,दौलत-सौहरत ,जीवन का ध्येय रखते ॥
रावण जो था त्रिलोक में सर्व बुद्धिमान
जिसके एक 'अहम्' ने सोने की लंका उजाड़ी थी
इस अहम् को त्यागो बंधुओं ,अन्यथा
देश लंका बन ,त्राहि-त्राहि मच जाएगी ॥
रावण के अत्याचार ने ,भाई को घर भेदु
बना , देश अपना छोड़ने को मजबूर किया
भ्रष्टाचार यूँ भी न करें किअपने ही प्रियजन
बन आतंकी ,विद्रोह की ज्वाला भड़काए ॥
रावण ने पर स्त्री का हरण किया
किन्तु उसके सतीत्व को ना शर्मशार किया
मगर आज मेरे अपने भारत में दुष्टों ने
भरे बाजार ,निर्भया जैसा कांड किया ॥
निकाल फेंको अंदर के रावण को
स्वच्छ करो दूषित वातावरण को
सुरक्षित हो महिलाएं ,ऐसा प्रण हो
न पनपे कुरीतियाँ ,ऐसा सुन्दर चमन हो ॥
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