पहन मुख़ौटा दुनिया देखन मैं चली
दहलीज़ लांघते ही ,अनेक मुख़ौटे दिख पड़े
जब देखा रक्षक ही भक्षक बन गया,ना देने पर
सौ रूपये की पत्ती ,भोला राजू हथकड़ी पहन गया
शूट -बूट वाले दानवीर ,कुचल प्राणी को
रफ़्तार पकड़ ,नशे में धूत आगे निकल पड़ा
चौराहे पर मिटठू ,शीशा पोंछता कारों के
छोटी -सी खरोंच पर बाबु से ,दस तमाचे खा गया
जैसे -जैसे आगे बढ़ी ,दिखे मुख़ौटे और
काला चश्मा ,कीमती मोबाइल का लगा मुख़ौटा
समाज सेविका जी , लेती सेल्फी सौ -सौ
नेता जी लगा आये, कथनी पर करनी का मुख़ौटा
ठग गए प्रजा को ,करके लुभावने वादे अनेक
वोट बैंक की राजनीति ,बिक गए सारे वसूल
सत्ता की भूख में अनाचरण में हुए मसगुल
मुख़ौटे की इस दुनिया में ,बच्चे भी करते ब्लैकमेल
ला दो वह लेटेस्ट मोबाइल वरना ना जाऊँ स्कूल
चन्दन -टिका लगा पंडित जी भक्ति -भाव भूल गए
राम नाम के मुख़ौटे में ,दक्षिणा बटोर चम्पत हुए
डिग्रियों के मुख़ौटे में शिक्षक ,छात्रों को भूल गए
ट्युइशन की बंदिस में, वसूलों को पीछे छोड़ गए
भाई मेरे इस दुनिया में हर चीज एक मुख़ौटा है
हाथी के दांत दिखाने केऔर ,खाने के ओर होते हैं ।
4 टिप्पणियां:
बहुत खूब।।।।।
अद्भुत अनुच्छेद
अद्भुत अनुच्छेद
What a profound poem! I wish people just be who they are without pretense.
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