ओ ! अनचाहे पल
कैसे पत्थर दिल हो तुम
क्यूँ आए मेरी जिंदगी में
तेरा ही तो जुड़वाँ था वो
दिए जिसने खुशी के पल हज़ार
डाल गया कोख में मेरी
एक प्यारी - सी जिंदगी
उसकी और मेरी धड़कन
साथ - साथ चल रही थी
ना थी कोई प्रत्यक्ष पहचान
धागा ममता का यूँ बंध गया
मैं और वो बन गए ,एक-दूजे की जान
आखिर क्षण इंतजार का आया
गोदी में मैंने मेरे लाल को पाया ।
मगर ऐ ! अनचाहे पल -
तुमने तो मुझे झकझोर ही दिया
मेरी छोटी -सी जान को
पीड़ा से भर दिया
बांध मेरे धैर्य की टूट पड़ी
अश्रुधारा आँखों से फुट पड़ी
जैसे ही नन्ही जान को सुइयां चुभती
ह्रदय में मेरे वेदना के कांटे चुभते
बंद ऑंखें और हाथ दोनों ऊपर उठते
हे ईश्वर ! मुझे इस अनचाहे पल का ,
वो जुड़वां ही फिर से दे दे
मेरे लाल की सलामती मुझे लौटा दे ।
कैसे पत्थर दिल हो तुम
क्यूँ आए मेरी जिंदगी में
तेरा ही तो जुड़वाँ था वो
दिए जिसने खुशी के पल हज़ार
डाल गया कोख में मेरी
एक प्यारी - सी जिंदगी
उसकी और मेरी धड़कन
साथ - साथ चल रही थी
ना थी कोई प्रत्यक्ष पहचान
धागा ममता का यूँ बंध गया
मैं और वो बन गए ,एक-दूजे की जान
आखिर क्षण इंतजार का आया
गोदी में मैंने मेरे लाल को पाया ।
मगर ऐ ! अनचाहे पल -
तुमने तो मुझे झकझोर ही दिया
मेरी छोटी -सी जान को
पीड़ा से भर दिया
बांध मेरे धैर्य की टूट पड़ी
अश्रुधारा आँखों से फुट पड़ी
जैसे ही नन्ही जान को सुइयां चुभती
ह्रदय में मेरे वेदना के कांटे चुभते
बंद ऑंखें और हाथ दोनों ऊपर उठते
हे ईश्वर ! मुझे इस अनचाहे पल का ,
वो जुड़वां ही फिर से दे दे
मेरे लाल की सलामती मुझे लौटा दे ।
1 टिप्पणी:
Maarmik rachna!
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