गुरुवार, 17 मार्च 2016

बड़ी मनचली मैं #Hapiness

ख़ुशी हूँ ख़ुशी मैं ,बड़ी मनचली मैं 
आँखों के नीर में छुप जाती मैं ,
होठों की मुस्कराहट से भी गुम हो सकती मैं 
सुख- दुःख दोनों में शामिल होती मैं 
नाउम्मीदों के बावजूद भी चली आती मैं 
उम्मीद पर भी न मिळू तो पैरों तले जमीं खीच लूँ मैं
बचपन ,जवानी या हो बुढ़ापा ,नाप -तौल एक सा मेरा
नज़र का फर्क है दोस्तों ,मैं किसी भी रूप में मिल जाती 
 ख़ुशी हूँ ख़ुशी मैं ,बड़ी मनचली मैं । 

मझे अमीरी - गरीबी से भेद भाव नहीं 
झोपडी में भी झोली भर -भर मिल जाती
महलों में भी बर्षों न पहुँच पाती 
ये मेरा कोई खेल नहीं ,न कोई मेरी गलती 
कोई ढूंढता मझे रम  पीकर ,कोई गम खाकर 
मेरी दास्ताँ अजीब है ,तुम समझ सके न मैं 
मैं तो हर -पल ,हर समय करती आँख मिचौली 
सिर्फ तिम्हारे नज़रिये का फर्क है साथी 
ख़ुशी हूँ ख़ुशी मैं ,बड़ी मनचली मैं ॥ 

this poem is written only for the IndiSpire topic #Happiness

2 टिप्‍पणियां:

Jyoti Dehliwal ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति।

Amit Agarwal ने कहा…

Bilkul sach!