ख़ुशी हूँ ख़ुशी मैं ,बड़ी मनचली मैं
आँखों के नीर में छुप जाती मैं ,
होठों की मुस्कराहट से भी गुम हो सकती मैं
सुख- दुःख दोनों में शामिल होती मैं
नाउम्मीदों के बावजूद भी चली आती मैं
उम्मीद पर भी न मिळू तो पैरों तले जमीं खीच लूँ मैं
बचपन ,जवानी या हो बुढ़ापा ,नाप -तौल एक सा मेरा
नज़र का फर्क है दोस्तों ,मैं किसी भी रूप में मिल जाती
ख़ुशी हूँ ख़ुशी मैं ,बड़ी मनचली मैं ।
मझे अमीरी - गरीबी से भेद भाव नहीं
झोपडी में भी झोली भर -भर मिल जाती
महलों में भी बर्षों न पहुँच पाती
ये मेरा कोई खेल नहीं ,न कोई मेरी गलती
कोई ढूंढता मझे रम पीकर ,कोई गम खाकर
मेरी दास्ताँ अजीब है ,तुम समझ सके न मैं
मैं तो हर -पल ,हर समय करती आँख मिचौली
सिर्फ तिम्हारे नज़रिये का फर्क है साथी
ख़ुशी हूँ ख़ुशी मैं ,बड़ी मनचली मैं ॥
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