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क्या सोचती थी ,
वह याद नहीं ।
क्या चाहती थी ,
भूल गयी ।
समय के थपेड़ों ने ,
समुद्री लहरों -सी ,
एक छोर से
दूसरे छोर तक ,
यूँ सुरक्षित ,
पहुंचा दिया कि -
शहर की गलियां ,
खोजने स्वयं
निकल पड़ी ।
जीवन के पथ पर ,
अनेक रूप मिले ,
पर किसी से कोई
शिकवा नहीं,
क्यूंकि हमसफ़र
कुछ ऐसे मिले
फिर चाह कोई
बाकी न रही ।
जीवन की संध्या
के आते -आते ,
अपूर्ण ख्वाहिशें
कविताओं में
परिणित हो गयी ।
ऐ खुदा ! अब
इन कविताओं को
जिन्दा रखना मुझमें ,
कि हँसते -मुस्कराते
गुजरे जिंदगी ।
5 टिप्पणियां:
Mujhe laga mere man ki baat aapne kavita ke roop main likh di.... Bohot bohot khoobsurat!
Lucky you:) God bless..!
बस ऐसी ही हैं ये कवितायें हम कवियों के जीवन में कि हर अधूरी आशा, निराशा यहाँ तक कि खामोशियाँ भी इनका रूप ले लेती हैं। बहुत खूब लिखा है आपने।
Thanks Shweta, Amit ji, Namrata for your valuable comments
Very nice read. :)
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